“ जिंदगी के बिखरे सफों को समेटने की ,
कोशिशें कुछ यूँ नाकाम हुईं जैसे -
नाकाम हो जाती हैं बादलों को -
समेटने में आसमान की कोशिशें !
मन के बिखरे भावों को समेटने की -
कोशिशें कुछ यूँ नाकाम हुईं जैसे -
नाकाम हो जाती हैं अक्षरों को -
को समेटने में शब्दों की कोशिशें !
जिंदगी के अकेलेपन को समेटने की -
कोशिशें कुछ यूँ नाकाम हुईं जैसे -
नाकाम हो जाती हैं तुम्हारे प्यार को -
को समेटने में मेरी अधूरी कोशिशें !!”
बहुत सी सुन्दर रचना
ReplyDeleteबस लिखती रहिये आप मेरे ब्लॉग पर भी अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाए
ये मेरी मिट्टी
http://dineshpareek19.blogspot.in/
दिनेश पारीक