Tuesday, December 18, 2012

शब्दों की कोशिशें .....


जिंदगी के बिखरे सफों को समेटने की ,
कोशिशें कुछ यूँ नाकाम हुईं जैसे -
नाकाम हो जाती हैं बादलों को -
समेटने में आसमान की कोशिशें !

मन के बिखरे भावों को समेटने की -
कोशिशें कुछ यूँ नाकाम हुईं जैसे -
नाकाम हो जाती हैं अक्षरों को -
को समेटने में शब्दों की कोशिशें !

जिंदगी के अकेलेपन को समेटने की -
कोशिशें कुछ यूँ नाकाम हुईं जैसे -
नाकाम हो जाती हैं तुम्हारे प्यार को -
को समेटने में मेरी अधूरी कोशिशें !!”


1 comment:

  1. बहुत सी सुन्दर रचना
    बस लिखती रहिये आप मेरे ब्लॉग पर भी अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाए
    ये मेरी मिट्टी
    http://dineshpareek19.blogspot.in/
    दिनेश पारीक

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