Tuesday, December 28, 2010

सकारात्मक दृष्टिकोण

" हमे कभी कभी लगता है न हमारा कोई काम होने वाला था पर नहीं हुआ ? हम सोचतें हैं कि उस काम को करने में हमसे कोई त्रुटी तो नहीं हुई .? पर बहुत सोचने के बाद हम तय करतें हैं न कि हमसे तो कोई गलती नहीं हुई फिर काम क्यों नहीं हुआ ? दरअसल होता यह है कि जब हम उस काम को कर रहे होते हैं, तो हम काम तो कर रहे होते हैं, पर अपने अन्दर अपने काम के प्रति सकारात्मकता के स्थान पर यह सोचतें है -कि पता नहीं हमारा यह काम होगा या नहीं ..? और इस अनिश्चितता के कारण न केवल हमारे अन्दर नकारात्मक भाव बढते हैं , अपितु काम के होने में भी रूकावट बन जातें हैं ! और जब काम नहीं होता, तो हम उस समय सोचतें हैं - कि काश उस समय हम अच्छा -अच्छा सोचते तो काम हो जाता ! यही अच्छा -अच्छा सोचना ही सकारात्मक भाव होता है , फिर हम सोचतें है आहिंदा हम सकारात्मक ही सोचेंगे ..! पर फिर हम भूल जातें हैं क्यों कि हम इसे अपनी आदत में या मानसिकता में ढाल नहीं पाते न ..! यह तो हुई कि हमारे कामों के सही ढंग से होने में सकारात्मक भाव की अहम् भूमिका होती है !
अब आते हैं इस सकारात्मक भाव का असर कितना अच्छे से हो सकता है ? यदि हम किसी चीज को पाना चाहतें है तो हमे अपने दिमाग में उसकी तस्वीर बनाये रखनी चाहिए और सोचना चाहिए हमे यह चीज मिल ही जाएगी ! यदि हम लगातार ऐसा करते है और फिर उस चीज को पाने का प्रयत्न करतें हैं तो निश्चित मानिये हमे वह चीज मिल ही जाती है ! तब हम खुश होते है कि हमे कितनी आसानी से चीज मिल गई! दरअसल होता यह है कि हमारे लगातार सोचने से , अपने दिमाग में उस वस्तु की तस्वीर बनाये रखने से हमारे आस -पास सकारात्मक उर्जा का वातावरण बन जाता है और यही वातावरण उस चीज को पाने की लालसा में जूनून पैदा करता है , और यही जूनून वस्तु पाने की सही दिशा बनता है ! और हम उस वस्तु को पा लेतें है !
हमारे आस -पास कितने ही ऐसे उधाहरण होते है जो सकारात्मक भाव से अपने सब काम करतें है ! हम उन्हें देख कर कहतें हैं कि - इनके सब काम कितनी आसानी से हो जाते हैं ..? उनके सब काम आसानी से होने के पीछे यही सकारात्मक भाव ही होता है ..! यही बात रत्नों पर भी लागु होती है ! जब हमे कोई ज्योतिष या रत्नों का जानकर हमे रत्न देता है यह कह कर कि इसे धारण करने से आपके सब काम अच्छे से होंगे साथ ही मन भी शांत रहेगा ! हम उस रत्न को सकारात्मक भाव से धारण करतें है और अपने काम उस रत्न को याद कर करते हैं और जब हमारे काम सफल होते है तो उसका श्रेय उस रत्न को देते है कि हमने वह  रत्न पहना तो हमारे काम सही ढंग से हुए ! दरअसल होता यह है कि वह रत्न तो केवल माध्यम होता है हमारे अन्दर सकारात्मक भाव बनाये रखने का ! ऐसे अनेक माध्यम हमें प्रेरित करते है कि हम अपने अन्दर सकारात्मक भाव सदा बना रहे ..! जैसे भगवान की भक्ति , संकीर्तन करना , बड़े - बुजुर्गों द्वारा अच्छे वचन कहना ...आदि आदि ..!
तो उम्मीद करूँ न कि कम से कम इस आने वाले नए साल में हम यह प्रण ले कि हम अपने सब कम अपने अन्दर सकारात्मक भाव बना कर करेंगे !!!
"... - मनु "

Monday, December 27, 2010

नया वर्ष शुभ हो ...!


" जब भी लगभग ३६५ दिन बीतते हैं , नया साल आता है ! और फिर शुरू होता है एक -दूजे को नए वर्ष की शुभकामनाये देने का दौर ..! यह दौर नया साल आने से एक सप्ताह पहले शुरू होता है जो नया साल आने के बाद लगभग एक सप्ताह तक चलता है ! सब चाहतें है उनका नया साल अच्छा बीते ..! साल के शुरू में तो जोश बना रहता रहता है पर जैसे -जैसे साल अपनी रह पर आगे चलता जाता है जोश कम होने लगता है ..! खैर इन बातों को अभी तो छोड़ते हैं अभी तो नया साल आने वाला है ..! तो सभी को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें ...आप सभी के जीवन में सब तरह की खुशिओं का आगाज़ रहे ...आप मुस्कुराते रहें और अपनी हर कठिनाई को सरल बनातें रहें ..! आपसे सभी खुश रहें ...!! आपके कामों से न केवल आप , आपका परिवार और हमारा यह भारत देश भी प्रगति करता रहे ...! इन्ही कामनाओं के साथ ......"
"... -- मनु "

Saturday, December 25, 2010

" दर्द की दवा "

" दर्द  का  अहसास  छुपा  ही  रहने  दो ,
क्योंकि  उसे  छुपाने  में  ही  मज़ा  है  !
मुस्कुरा  सकते  हो  जितना  मुस्कुरा  लो ,
क्योंकि  मुस्कुराना  दर्द  की  दवा  है  !!"

Wednesday, December 15, 2010

" उमंग "

"मन  की उमंगो  को  बहने  दो  समुन्द्र  की  तरह ,
रिश्तों  को  चमकने  दो  चांदनी  की  तरह  !
क्या  मालूम  कब  अपना  हो  जाये  कोई  परछाई की  तरह ,
दिल  को  मुस्कुराने  दो  खिलते  फूलों   की  तरह  !!"

" - .. मनु "

" उमंग "

"मन  की उमंगो  को  बहने  दो  समुन्द्र  की  तरह ,
रिश्तों  को  चमकने  दो  चांदनी  की  तरह  !
क्या  मालूम  कब  अपना  हो  जाये  कोई  परछाई की  तरह ,
दिल  को  मुस्कुराने  दो  खिलते  फूलों   की  तरह  !!"

" - .. मनु "

Monday, December 13, 2010

" संतों की वाणी "

" कुछ संतों ने अपनी वाणी में कुछ ऐसी -ऐसी बातें कहीं हैं , जिन पर समय का कोई असर नहीं होता ..! अर्थात समय कैसा भी हो वे बातें ऐसी लगतीं हैं जैसे आज के समय की हों और आज के समय के लिए सही हैं ..? शायद इसलिए तो कहतें हैं न ..संतों की वाणी में छुपे अर्थ को हमेशा मन में ग्रहण करना चाहिए , और जब हमे लगे कि हमारे जीवन में कोई उहापोह की स्थिति आ रही है तो वही वाणी हमे ऐसा रास्ता दिखा देतीं हैं,  कि हमे अपने पर विश्वास हो जाता है, कि हम उन्हें आसानी से दूर कर सकतें है ...! आज मैं एक ऐसे ही संत की वाणी के कुछ अंशों को प्रस्तुत कर रहा हूँ , जो कभी भी , किसी भी कठिनाई को दूर करने में हमारे आत्मविश्वास को मजबूत करने में सहायक होतीं हैं ! उन संत का नाम है -- ओशो यानि आचार्य रजनीश ,
संकल्प आपको कार्य करने के लिए प्रेरित करता है ! फिर आप वही बन जातें हैं जो आप बनना चाहतें हैं ! संकल्प , पक्का इरादा और मजबूत हौसला भी तैयार करता है ! तो सोचिये इनकी जरुरत किसे नहीं होगी .......! टालसटाय ने कहा था कि- " आप अपने लक्ष्य के अनुरूप व्यवहार करें , फिर ईश्वर आपकी सहायता के लिए खुद उतर आयेंगे ! इसके बाद आपको अपनी उन आदतों को बदलने की कोशिश करनी होगी , जो आपको अपने लक्ष्य से डिगा सकती हैं ! जैसे - नकारात्मकता !" इसलिए हमे हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए , अर्थात हमे अपने जीवन में क्या करना है जिससे हमारा जीवन सार्थक हो सके!
" जब भी आप अपनी उम्र को खुद पर हावी होने का मौका देंगें , तब आप बहुत से अवसरों का लाभ उठाने से चूक जायेंगें ! इसलिए उम्र के लिहाज से काम करने के बारें में सोचना बंद कर दें ! और तुरंत संकल्प लें कि हम अपनी इस सोच को बदल कर ही दम लेंगे ..!" अर्थात होता यह है कभी - कभी कि हम कुछ ऐसा करना चाहतें है जो सबके लिए और हमारे लिए अच्छा हो सकता है पर हम यह सोच कर रह जातें हैं कि उम्र के लिहाज से शायद यह सही न हो ...? बस यह सही नहीं होता ..अब यदि हम ऐसा कुछ कर जाएँ उम्र का लिहाज किये बिना तो ...सभी उस किये गए कार्य कि प्रशंसा ही करेंगे न ..! हाँ यहाँ एक बात की तरफ ध्यान देना जरुरी होता है कि कहीं हमारे स्वास्थ्य , मन या परिवार को कोई नुकसान तो नहीं हो रहा ..!
" लम्बी बहसों से दूर रहने वाले लोग हमेशा खुश रहतें है ! क्योंकि वे क्रोध को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते ! फिर उनका दूसरों के साथ करीबी रिश्ता बन जाता है ! दूसरों के नजरिये को समझिये और उनके करीब रहने की कोशिश कीजिये ! " यानि सबसे पहले तो लम्बी बहस करने से बचना चाहिए , क्योंकि लम्बी बहस जिस विषय से शुरू होती है वह धीरे - धीरे अपने विषय से दूर होती जाती है , और अंत में निर्णय कुछ निकलता नहीं है , ऐसे में हम खुद भी तो कहतें है न कि - इतनी बातें की पर नतीजा कुछ नहीं निकला ..!
" आपका मस्तिक्ष बहुत से स्त्रोतों से विचारों को ग्रहण करता है ! इसलिए यह  आसान नहीं होता कि आप अपने पहले से मौजूद विचारों को बदल सकें ? लेकिन कल्पना शक्ति का विस्तार करने के लिए उन विचारों को छोड़ना पड़ता है ! फिर आपके मस्तिक्ष में नए विचार आना शुरू हो जातें हैं ! " यानि हमे हमेशा अपने अनुभवों को प्राप्त की गईं जानकारिओं को बांटते रहना चाहिए , साथ ही अपने अन्दर कल्पना शक्ति को भी बनाये रखना चाहिए तभी हम कुछ नया सोच पायेंगें न ..!
अपने भीतर के बच्चे को हमेशा जिन्दा रखे ! तब वह आपको जीवन के हर मोड़ पर मिलने वाली छोटी - बड़ी खुशियों का आनंद उठाने के काबिल बनाएगा ! यदि आप उसके जादू से वाकिफ होना चाहतें हैं तो अपने अन्दर के बच्चे को हमेशा जिन्दा रखें !" यानि जैसे बच्चा होता है न जो हर बात में जिज्ञासु होता है , छोटी - छोटी खुशियों में खुश रहता है ...उसमे दर नाम की चीज नहीं होती ...कोई भी काम करने में हिचक नहीं होती ...वह यह नहीं सोचता की उस काम का अंजाम क्या होगा ..! वह तो अपने पूरे मन , लगन और हसंते हुए काम करता है ..! इसी को तो कहतें है न कि अपने अन्दर बच्चे को जिन्दा रखना ..!
बस यही कुछ बातें है न जिन्हें हम अगर हमेशा याद रखें तो सोच कर देखिये ..क्या कभी हमे कठिनाई का सामना करने में कोई दिक्कत होगी ..! नहीं न ..!! "
(सीक्रेट आफ सक्सेस से साभार )

" - ... मनु "

Sunday, December 12, 2010

" जीवन की ख़ुशी "

 " ख़ुशी को हम जितना लुटाएंगे , उतना ही वह हमारे करीब आएगी ! कभी सफलता के रूप में तो कभी सम्पन्नता के रूप में ! इसलिए खुश रहना अपने अन्दर आत्मविश्वास मजबूत करने का माध्यम भी है ! जब हम अपनी आंतरिक योग्यताओं को पहचान लेतें हैं और फिर उन्हें आधार बना कर आगे बढतें हैं तो हमे ख़ुशी और कामयाबी साथ -साथ मिलती है ! कहतें है न - " जिंदगी छोटी है मगर खोटी नहीं ! इसलिए छोटी - छोटी बातों में फंसकर जिंदगी को बर्बाद नहीं करना चाहिए !" और जिंदगी को आबाद करना और उसे खुश रखना हमारे स्वयं के नियंत्रण में है न ..! करना ज्यादा कुछ नहीं है केवल - अपने अन्दर आत्मविश्वास का दीपक जलाये रखें , ख़ुशी का प्रदर्शन हंसी से करना ! क्योंकि जहाँ हंसी है वहां सफलता है ! इसलिए हंसी से अपनी आंतरिक प्रसन्नता को व्यक्त कीजिये ! ख़ुशी - आनंद , जुडाव और औचित्य पर निर्भर होती है ! इसलिए तुरंत अपने अन्दर इस बात को महसूस कीजिये कि क्या इन तीनों का सही अनुपात आपके अन्दर है ? साथ ही नियमित भोजन , शांत रहना और प्रसन्नचित मन बनाये रखना भी हमारे जीवन को खुश रखता है न !
तो हम सभी चाहतें हैं न कि हम भी खुश रहें चाहे कितने भी कठिन हालत क्यों न आ जाएँ ...और यह सब करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा न , तो ऊपर जो लिखा ...उस पर विचार कीजियेगा ..अच्छा लगे तो पालन कीजियेगा ! हो सकता है आप भी खुश हो जाएँ ..तो आपके आस - पास सभी आपको खुश देख कर खुश हो जायेंगे न ..! "
इस बार इतना ही ---

" - ... मनु "

Saturday, December 11, 2010

" भरोसेमंद सहयोगी का साथ सफलता का सूत्र "

"भरोसेमंद सहयोगियों की तलाश मुश्किल नहीं होती !मुश्किल होता है तो उसका विश्वासपात्र होना !! सहयोगी अगर विश्वसनीय है , तो व्यापक सफलता के साथ मुश्किल कम भी आसान हो जातें हैं !!! हम कोई भी काम करें - चाहे वह व्यापार हो , घर में कोई मांगलिक कार्य हो , किसी भी तरह का धार्मिक आयोजन हो ...! इन सबकी सफलता का सूत्र केवल एक ही होता है और वह है - भरोसेमंद सहयोगियों का साथ होना ! यदि ऐसे सहयोगी साथ है तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता ! वह इतनी आसानी से हो जाता है , कि सहसा विश्वास नहीं होता ! यदि सहयोगी भरोसेमंद नहीं है , तो कोई भी सफल होता हुआ काम असफल भी हो जाता है ! फ़िल्मी दुनियां से शुरू करें , बहुत साल पहले - गीतकार शैलेन्द्र , संगीतकार शंकर जयकिशन , गायक मुकेश , नायक राजकपूर एक दूसरे के भरोसेमंद सहयोगी हुआ करते थे , देखिये उनकी फिल्मे - मेरा नाम जोकर , आग, आह , श्री चार सौ बीस , आवारा कितनी सफल रहीं साथ ही उनके गीत आज भी हम गुनगुनातें है न ..! व्यापार में देखें तो सहारा श्री को भरोसेमंद सहयोगी मिले तो साधारण बैंकिंग से आज एक महत्वपूर्ण नाम है न ...! परिवार में देखें तो पति -पत्नी के आपसी सहयोग से हम शिक्षित होतें हैं और अपने जीवन में स्थापित होतें है यदि उनमे सहयोग न हो तो ..? कहने का तात्पर्य इतना है है कि हम कोई भी काम करें , विश्वसनीय सहयोगी का साथ होना जरूरी है ! पर हाँ यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है , कि हम अपने सहयोगी का विश्वास जीत पातें हैं या नहीं ? बस यही थोडा मुश्किल है ..!
अपने सहयोगी के विश्वास को जीतने के लिए सबसे पहले हमे उसके बारे में पूरी जानकारी , उसके स्वभाव , पारिवारिक पृष्ठ भूमि की जानकारी सहित उसकी कार्यक्षमता को भी देखना होता है ! यदि हम संतुष्ट हैं, तो उसके बाद हमे ज्यादा कुछ नहीं करना चाहिए ! बस उसे अपने काम के बारे में और भविष्य की योजनाओं की जानकारी देनी चाहिए और अपनी - अपनी स्वतंत्रता  , लगन और आत्मविश्वास से कार्य करना चाहिए ! हमारा व्यव्हार ऐसा होना चाहिए,  जिससे हमारे सहयोगी को ऐसा न लगे कि हम उसका गलत फायदा उठा रहें है !
अगर हम इतना कर पातें है न...तो सच मानिये हम कोई भी काम करेंगे न... उसमे सिर्फ और सिर्फ सफलता ही मिलेगी ! हाँ ! एक बात का और ध्यान रखना होगा न कि एक दूजे के जीवन के सुख - दुःख के पलों में एक दूजे का साथ दें ! बस इतना ही तो करना होता है , फिर सफलता कहाँ है  दूर ........सोचिये ..???
आज बस इतना ही -!"

" - ... मनु "

Friday, December 10, 2010

" जीवन जीना शुरू करें...!"

" जीवन भी कितना अजीब होता है न ...! समझ में नहीं आता हम जीवन जीतें हैं या जीवन हमे जीता है ..? कभी - कभी हमे लगता है कि हम जीवन को जीना जानतें है ? पर कभी लगता है न कि हम जीवन को समझ ही नहीं पाए  ? साथ ही कुछ रिश्ते ऐसे भी होतें है न ...जिन्हें हम समझ नहीं पाते और कहते है न कि काश ...हमे भी मिल जाती खुशियाँ ..जैसे अन्य को मिलतीं है ? अब यदि हम कुछ रिश्तों को बनाने में कुछेक सामान्य बातों को ध्यान में रखें तो निश्चित रूप से हम भी वह खुशियाँ पा सकतें है, जिन्हें हम अपने मन में सोचतें हैं !

'
दोस्ती '
हमारे जीवन में भी एक अच्छा दोस्त हो या अनेक हों , हम यही सोचतें है न ...! तो अगर हम दोस्ती करने से पहले या दोस्ती करने पर कुछ बातों को अपने मन में रखें और उनका पालन करें तो हमे भी अच्छे दोस्त मिलेंगे - " दोस्ती हरदम एक मीठी जिम्मेदारी होती है , न कि लाभ पाने का एक सुनहरा अवसर ! ' आस्था दिल की गहराइयों में समाया हुआ ज्ञान होतीं है , सबूतों की पहुँच से परे ..! " बस इनको मन में बसा कर रखें और इनके अर्थ को अपनी दोस्ती में पिरो ले तो हम भी कह उठेंगे न कि -हमारे पास भी अच्छे दोस्त हैं !

" प्यार " , हमारे जीवन में एक ऐसा पल भी आता है न जब हम किसी से प्यार करने लगतें हैं ! पर कभी - कभी कुछ ऐसा भी हो जाता है कि हम स्वयं ही कह उठतें हैं कि काश हमे भी प्यार की खुशियाँ मिल गईं होतीं ? अब यदि हमने  प्यार करते समय अपने मन में इन बातों को रखा होता या पालन किया होता तो हम यह शब्द नहीं कह रहे होते न ..! "प्यार तब  तक अपनी गहराई नहीं जानता, जब तक कि अलगाव की घडी न आ जाये ! " ," किसी से प्यार करो , पर प्यार को बंधन न बनाओ ! आत्मा की लहरों के बीच प्यार के समुन्दर को बहने देना चाहिए ! ' ,' जब हम किसी से प्यार करतें हैं और वह जाना चाहे तो उसे जाने देना चाहिए ! यदि वह वापस आये , तो वह हमेशा हमारा ही रहता है ! यदि वापस न आये तो मन लेना चाहिए कि वह कभी हमारा था ही नहीं ! " अगर हम इन बातों को मन में रखेंगे न तो हमे भी प्यार कि खुशियाँ मिलेंगी , यदि किसी कारण न भी मिली तो हमारे मन को कोई ठेस भी नहीं लगेगी न ..!

बस इतनी सी बातें होतीं है न जिन्हें हम अपने मन में रखें और उन पर अमल भी करें तो न केवल मन खुश रहेगा बल्कि कुछ अनहोनी होने पर मन विचलित भी नहीं हो पायेगा न ..!

" - ... मनु "

Thursday, December 9, 2010

" बोलना एक कला है "

" बोलना वास्तव में एक कला है , जो कई बिगड़े और मुश्किल भरे कामों को भी आसानी से हल कर देता है ! बोली के माध्यम से हम एक दूसरे से बातचीत करने के साथ -साथ विचारों का भी आदान -प्रदान करतें हैं ! यदि हमारी बोली प्रभावपूर्ण है तो दूसरों को आसानी से आकर्षित कर लेती है ! चाहे साधू -संत हों , नेता -अभिनेता हर इन्सान अपनी बोली से अपनी एक अलग छाप छोड़ता है न ! उदाहरण के लिए - अमिताभ बच्चन  को ही ले तो उनकी बोली या आवाज में इतना आकर्षण है कि हर कोई उनका दीवाना हो जाता है ! ऐसे ही अनेक उदाहरण  हैं न ..! कभी -कभी हमारे मन में भी आता है न कि हम भी ऐसा बोलें कि सब हमसे प्रभावित हों ? यह हो भी सकता है , बस हमे थोड़ी सी कोशिश करनी होगी ! कुछ अपने अन्दर बदलाव करने होंगे !! कुछ बातों का पालन करना होगा !!! अगर हम यह कर लेंगे तो हमारे बोलने से न केवल सब खुश होंगे बल्कि हमे खुद को भी अच्छा लगेगा !
*-- जब हम बातें करें तो अपनी आवाज पर ध्यान देना चाहिए , जो न तो बहुत तेज हो न ही बहुत धीमी !
*-- बोलते समय ध्यान दे कि सुनने वाला हमारी बातों को समझ रहा है , उसमे जल्दबाजी न हो , शब्दों का चयन अच्छा हो , कहाँ विराम देना है इसका ध्यान हो ..और हाँ साथ ही इसका भी ध्यान हो कि बोलते समय हम कहीं शब्दों में अटक तो नहीं रहे !
* -- शब्दों का उच्चारण सही होना चाहिए , व्याकरण की गलतियाँ न हो ! यदि ऐसा हुआ तो बोलने में अर्थ का अनर्थ होने में देर नहीं लगेगी और हम उपहास का पात्र बन जायेंगे !
* -- बोलने के पहले हम किस विषय पर बोल रहें हैं उसके बारें में पूरी जानकारी होनी चाहिए , उस विषय के बारे में महान चिंतकों के सूत्र वाक्य , मुहावरे , कहावतें , या रोचक घटनाओं की जानकारी हमारे मन में मस्तिक्ष में होनी चाहिए ! ता कि जब हम बोलना शुरू करें तो कहीं अटकें नहीं !
* -- बोलते समय हमारे चहरे के भाव , शरीर के  हाव -भाव ऐसे होने चाहिए कि सुनने वाले को या देखने वाले को ऐसा न लगे कि हम कुछ ज्यादा अपने आप को दिखा रहे है , सामान्य रह कर और विषय के अनुसार अपने हाव - भाव बदलते  रहें ! आवाज में विषय के अनुसार स्वर या रस का प्रयोग करें - यानि कहीं मुस्कुराने की बात हो तो अपने चेहरे पर मुस्कराहट लायें , इसी प्रकार अपने चेहरे के भाव विषय के अनुसार बदलते रहें !
बस इतना  ही तो करना है ...इतना करने से हमारे बोलने से न केवल सब खुश होंगे अपितु हम स्वयं भी संतुष्ट होंगे न ..!
चलिए आज इतना ही ...! "
" - ... मनु "

" चंचल मानव मन "

" जीवन में हम पता नहीं कितने लोगों  से मिलतें हैं पर हमे सब याद नहीं रहा पाते , हाँ कुछ लोग अपनी विशिष्ट पहचान के कारण याद रह जातें है ! हमारा मन करता है न कि ऐसे लोग हमारे जीवन  में हमेशा बने रहें ! साथ ही हम कोशिश भी करतें हैं न कि हम सदा ऐसे लोगो से मिलते रहें ! इसी के लिए हम अच्छे काम भी करतें हैं ! मीठी - प्यारी बातें भी करतें हैं ! इसी लिए न कि हमारे आस -पास अच्छे लोगो का वातावरण बना रहे ! चलो यह तो हुई अपने आस - पास अच्छे -अच्छे लोगों के बनाये रखने की बात ..!
पर हमारे जीवन में कुछ पल ऐसे भी आतें है जब कोई हमें इतना प्रभावित कर देता है कि वह हमारे लिए सबसे अलग हो जाता है ! लगता है जैसे वह हमारा सच्चा साथी है ! हम हमेशा चाहतें है न कि हमारे जीवन में एक ऐसा साथी जरूर हो , जिस पर हम विश्वास करें और वह हम पर विश्वास करे ! मानव मन भावुक होता है न , कोई पसंद आ गया तो उसके लिए मन में भावनाएं उमड़ती हैं , प्यार आता है , मन करता है वह सदा साथ रहे ! कभी भी दूर न हो !! और यदि कोई पसंद न आये तो मन करता है कि हम फिर कभी उसे न देखें , बात भी न करें ! यही तो मानव मन की विशेषता है न ...!
इसलिए सच है न कि --

" जो आपकी जिंदगी बदल दे , आपमें बदलाव लाये और आपकी सहायता करे , वही आपका सच्चा साथी है !"
"- ... मनु "

" चंचल मानव मन "

" जीवन में हम पता नहीं कितने लोगों  से मिलतें हैं पर हमे सब याद नहीं रहा पाते , हाँ कुछ लोग अपनी विशिष्ट पहचान के कारण याद रह जातें है ! हमारा मन करता है न कि ऐसे लोग हमारे जीवन  में हमेशा बने रहें ! साथ ही हम कोशिश भी करतें हैं न कि हम सदा ऐसे लोगो से मिलते रहें ! इसी के लिए हम अच्छे काम भी करतें हैं ! मीठी - प्यारी बातें भी करतें हैं ! इसी लिए न कि हमारे आस -पास अच्छे लोगो का वातावरण बना रहे ! चलो यह तो हुई अपने आस - पास अच्छे -अच्छे लोगों के बनाये रखने की बात ..!
पर हमारे जीवन में कुछ पल ऐसे भी आतें है जब कोई हमें इतना प्रभावित कर देता है कि वह हमारे लिए सबसे अलग हो जाता है ! लगता है जैसे वह हमारा सच्चा साथी है ! हम हमेशा चाहतें है न कि हमारे जीवन में एक ऐसा साथी जरूर हो , जिस पर हम विश्वास करें और वह हम पर विश्वास करे ! मानव मन भावुक होता है न , कोई पसंद आ गया तो उसके लिए मन में भावनाएं उमड़ती हैं , प्यार आता है , मन करता है वह सदा साथ रहे ! कभी भी दूर न हो !! और यदि कोई पसंद न आये तो मन करता है कि हम फिर कभी उसे न देखें , बात भी न करें ! यही तो मानव मन की विशेषता है न ...!
इसलिए सच है न कि --
" जो आपकी जिंदगी बदल दे , आपमें बदलाव लाये और आपकी सहायता करे ,
वही आपका सच्चा साथी है !"
"- ... मनु "

Tuesday, December 7, 2010

" रूठना मुझसे "

" घिर कर आती घटाओं से ,
जब पूछता हूँ नाम तुम्हारा -
कलियाँ रूठ जातीं हैं मुझसे !

मचलते निर्झरों की मदहोशी से ,
जब पूछता हूँ पता तुम्हारा -
कल्पनाएँ रूठ जातीं हैं मुझसे !

मौसम की छलकती जवानी से ,
जब पूछता हूँ सौन्दर्य -रहस्य तुम्हारा -
कामनाएं रूठ जातीं हैं मुझसे !

इसलिए तो कहता हूँ तुमसे ,
अगर मिल जाये प्यार तुम्हारा -
यह सब हो जायेंगे खुश मुझसे ! "

" - ... मनु "

" डाली "

" सुबह की पहली -
किरण के आंचल में ,
पुष्पों का सौन्दर्य -
अद्वितीय हो उठता है !

घटाओं की प्यारी सी -
भीगती नन्ही -नन्ही बूंदों में ,
डाली के प्यार से -
पुष्प खिल उठता है !

जीवन में किसी के -
प्यार भरे आँचल में ,
दिल का चमन -
खुशियों से महक उठता है !"


" - ... मनु "

Monday, December 6, 2010

" जीवनास्तित्व "

" क्षितिज सी अनंतता लिए ,

   एक लम्बी सी पगडण्डी ,
 
वीरान उदास सी -
  विभिन्नता सामान जिंदगी है !



सफलता , उम्मीद , प्रतीक्षा ,
यह कुछ रूप ,
अनेक स्वरूपोस्तित्व परिपूर्ण -
रेगिस्तान में मृगतृष्णा सी जिंदगी है !


संबंधों की डोर में ,
अजीब से उलझावपन में ,
संघर्ष , कोशिश , हिम्मत से -
स्वयं को सुलझाती सी जिंदगी है !


क्षणिक से समयांतराल में ,
अपने विशालास्तित्व पूर्णता से ,
बचपन , जवानी , बुढ़ापे से -
शनै - शनै गुजरती सी जिंदगी है ! "


" - ... मनु "

" लिखना संतुष्टि देता है मन को ....!"

" किसी भी तरह का ज्ञान हो या अविष्कार ..यदि उसे लिखा न जाये तो उसके अस्तित्व का पता नहीं चल पाता ! ठीक इसी तरह यदि हम अपनी बातों को विचारों को न लिखें तो पता नहीं चलता कि हम क्या हैं? क्या सोचतें है ? क्या सोच सकतें है ? इसलिए सदियों से लिखने की परंपरा चली आ रही है ! अब यह बात अलग है कि समय के साथ लिखने के तरीके बदले , माध्यम बदले , पर लिखना नहीं रुका ! इसलिय हमे भी लिखने की आदत बनाये रखनी चाहिए न ! पहले तो होता यह था कि लिखो फिर छपवाओ , बाटों तब कुछ को ही पाता चल पाता था कि फलाने शख्स ने कुछ लिखा है ? फिर आया समाचार पत्र का जमाना ..पर उसमे लिखना ज्यादा दिनों तक याद नहीं रह पाता था ...! उसके बाद आया इन्टरनेट का जमाना ..यह वो क्रन्तिकारी माध्यम है जिसके माध्यम से हमारा लिखा लम्बे समय तक रहता है , और जब चाहे पढ़ सकतें है , उसमे अपनी प्रतिक्रिया दे सकतें हैं , जो आगे लिखने में हमारा मार्गदर्शन करतीं हैं !
तो कहने का मतलब केवल इतना ही है कि लिखने से न केवल हम अपने मन की बातें लिख कर अपने मन को हल्का भी कर पातें हैं साथ ही अपने आप को पहचान भी पातें हैं ...! और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह भी है कि हम समाज में चेतना भी जगातें हैं ! और अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को बांटते भी है ! यह हमारा कर्तव्य भी तो है न ...! उधारहण के लिए अमिताभ बच्चन को ही ले, वे प्रतिदिन अपने ब्लाग में अपने मन की भावनाओं को लिखतें है , कितने सामान्य रहतें हैं...!अपने कर्म क्षेत्र में उनका अपना अलग स्थान है न ..!
लिखने से कुछ फायदे भी होतें है ? जैसे हमारा व्यक्तित्व सामान्य रहता है , उसमे कोई दिखावट , घमंड या ऐसी कोई चीज नहीं आ पाती जो हमारे व्यक्तित्व में कहीं नकारत्मक शो करे ! हमारे अन्दर कुछ सीखने की प्रवर्ति बढती है , शब्दों पर , बोलने पर नियंत्रण करना आ जाता है ! और लिखने से कभी - कभी हम कुछ ऐसा भी लिख जातें है जिस से हम अपनी अलग पहचान भी बना पाने में सफल हो सकतें है!
तो शुरू करें लिखना ...हाँ एक बात और लिखते समय यह कभी न सोचें कि पढने वाले क्या सोचेंगे ? बस जो मन में है उसे जरा सलीके से अच्छे शब्दों में लिखतें जाएँ ..! कोशिश करें कि उसमे रोचकता हो ...! बस इतना ही ...!
शेष फिर
आपका अपना ही ---
" - ... मनु "

" दुनियां में धर्म -कर्म के सिवा अपना कुछ भी नहीं !"

" सच ही तो है ...इन दोनों के सिवा अपना है ही क्या ? और यदि हम इन दिनों में सही ताल -मेल बैठा सकें तो हमारा यह जीवन न केवल खूबसूरत हो जायेगा ! अपितु हम सदा सामान्य भी रह पाएंगे साथ ही हमारे सभी काम सफल भी होंगें ! कर्म का मतलब हमने सुना है कि जो काम हम करतें है, उसे अच्छे से करें , मेहनत से करें , मन लगा कर करें ...! है न ..! पर इसमें हम एक चीज पर ध्यान देना भूल जातें है ? और वो है अपने काम में कुछ नया करना ..! कुछ जोखिम उठाने की हिम्मत भी करना ..! अब होता यह है कि यदि हम अपने काम में इन चीजों को नहीं शामिल करते तो हम अपने कर्म क्षेत्र में अपनी पहचान नहीं बना पाते ? केवल नियमित प्रगति ही कर पातें है , जो बाद में कहीं हमारे मन में टीस पैदा करती है कि काश उस समय कुछ तो मन में था, अगर उस पर अमल किया होता, तो अपने कर्म क्षेत्र में अपना भी कुछ नाम होता ..! पर उस समय हम कुछ नहीं कर पाते ...! समय निकल चुका होता है न ..! अब यदि हम समय रहते अपने कर्म क्षेत्र में कुछ नया करने का जोखिम उठाने की हिम्मत करते तो सब कहते- वाह क्या बात है ! इतनी जल्दी यह शख्स इतना अच्छा काम कर गया ..! यही होता है कि कर्म रह जाता है ...जिससे हमारा नाम रह जाता है ..!
अब आतें है धर्म पर , लगभग हम सभी धर्म का मतलब ईश्वर की आराधना करने को ही मानतें है न ..! वैसे यह भी सही है पर इसमें भी हम कुछ बातों पर अमल करना भूल जातें है ? जैसे - हम पूजा करतें हैं , मंदिर जातें हैं , और तीर्थ -यात्रायें करतें है ! यह सब तो ठीक है पर यदि हम तीर्थ स्थलों पर उन सब की सेवा करें जो किसी न किसी चीज से महरूम हैं , जैसे अपंग, वृद्ध , कमजोर, निसहाय , गरीब , आदि ..इन्हें हम अपनत्व भरे व्यवहार का उपहार दें , और वृद्ध जनों से कुछ समय बैठ कर बातें करें , कमजोर को जिस चीज की जरूरत उस वक्त हो अपनी सामर्थ्य के अनुसार ले कर दे दें ! जो गरीब हों उनसे अपनत्व भरी बातें करके यह जाने कि उनके घर में क्या कमी है , उनके बच्चों की पढाई कैसी चल रही है ...किस स्कूल , कालेज में पढतें हैं ? जानकारी ले और अपनी सामर्थ्य अनुसार उसकी इस तरह मदद करें कि या तो उसे पता न चले और यदि पता भी चल जाये तो उसे वो अहसान न समझे ! दरअसल होता यह है कि हम स्वाभाविक रूप से बातें नहीं कर पाते ? इसलिए जब हम किसी की मदद करतें है तो उसे लगता है हम उन पर अहसान कर रहें हैं या अपने नाम के लिए कर रहें हैं ! और इस तरह हम उसके दिल में अपना स्थान नहीं बना पाते ! संत , या साधू केवल अपने व्यवहार में , बात- चीत में स्वाभाविकता बनाये रखतें है इसलिए वे सबके मन में बस जातें है ! जब कि वे धन दौलत से किसी की मदद नहीं करते , वे जिस भी धार्मिक स्थान पर जातें है स्वाभाविक रूप में रहतें है यह नहीं शो करते कि वे उस स्थान के दर्शन के लिए आयें हैं ! जब कि हम शो करतें है न ..! अब हम उन धार्मिक स्थलों में धन दौलत देने के स्थान पर जो वहां जरूरत है उसे अपनी सेवा से स्वयं पूरा करें तो उस स्थल पर हमे सब याद करेंगे न कि - कितना अच्छा व्यक्ति था खुद आ कर यह काम यहाँ के लिए कर गया ...!
तो हम इन दोनों को अपने जीवन में ठीक उसी तरह शामिल कर ले ! जैसे - धन दौलत कमाने की ललक , लोगों को खुश करने की ललक , तो हमारा जीवन और सुन्दर हो जायेगा न ..! शायद मन ही मन हम भी तो यही चाहते है न ..! "
आज इतना ही ...शेष फिर ..
आपका अपना ही ---
" - ... मनु "

Sunday, December 5, 2010

" कुछ मेरी भावनाएं है जो मुक्तक के रूप में ढल सी गई हैं , जिन्हें अपने इस ब्लाग में लिख रहा हूँ ----!"

* " उम्र के सरकते दिन ,
ग़मों को बढ़ा गए !
कहने को तो जी लिए,

फिर ऐसा जीना भी क्या ? "
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* ' चाहत के चन्द लव्जों को ,
सीने से लगाये रहे !
बस इसी वहम में ,
जिंदगी गुजर जाये !! "
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* " मुस्कुराने की कोशिशें ,
जब नाकाम होतीं हैं !
दिल फिर उन्हीं ,
वीरानों में भटक जाता है !! "
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* " प्यार की उस आखं - मिचोंनी को ,
हम खुद भी तो नहीं समझे !

लोग पूछ्तें हैं अक्सर ,
उस आगाज का अंजाम क्या हुआ ? "

" - ... मनु "

" तमन्ना "

" न देखा करेंगे ख्वाब ,
न कोई तमन्ना करेंगें !
मग़र इसी कश्मकश में
तमाम-
भूली हुई तमन्नाओं को -
ताजा कर बैठे ...!! "

" - ... मनु "

" फिर गुनगुनाएं "

" चलो आज फिर गुनगुनाएं ,
प्यार के गीतों को -
जिन्हें हम छोड़ आये थे ,
कुंजों में , गलियन में !

आज फिर महकाएं ,
उन पलों को क्षणों को ,
जिन्हें हम छोड़ आये थे -

चिंताओं में , तकलीफों में !

चलो आज फिर बतियाएं ,
उन बातों को , यादों को -
जिन्हें हम छोड़ आये थे ,
इंतजार में , अखियन में !

चलो आज फिर झिलमिलायें ,
उन तारों में , आकाश में -
जिन्हें हम छोड़ आये थे ,
दूरिओं के जंजाल में ! "

"- ... मनु "

Saturday, December 4, 2010

" याद "

" याद तो याद है याद को क्या कहिएगा !
भूलने की कोशिशें और ताजगी दे जाएँ तो क्या कहिएगा !!

है बात कुछ भी नहीं इतना वो भी समझतें हैं !
बदल रहें हैं लोग ज़माने को क्या कहिएगा !

हर शख्स है पहेली किस -किस की मिसाल दूँ !
खुद को ही ले लीजिये भला आप क्या कहिएगा !!


दस्तक - ऐ - इंतजार में क्यूँ बैठे हो !
जब वो आ जाये तो क्या कहिएगा !!

ख़त्म न होगी मेरी दास्ताँ चन्द लव्जों में !
अब चलतें हैं हम फिर कभी मिलिएगा !! "

" - ... मनु "

" आरजू "

"पूरी नहीं होती जाने क्यूँ आरजू मेरी ,
लोग शायद मुझे जीने की दुआ देतें हैं !

मुझको न मिला तो क्या दिल के करीब है इतना ,
वरना जो मिलतें हैं वे तो जुदा होतें है !


हैं वो खुशनसीब जिसे गम ही मिलतें हैं ,
ख़ुशी दे के मुकर जाये वे तो खुदा होतें हैं !

जागी - जागी सी रातें , सोये -सोये से दिन हैं ,
हमको खबर नहीं जाने कब जागते कब सोतें हैं !! "


"-...मनु

" मैं निखरता जाऊं "

" तुम जीवन बनो मैं कर्म बनूँ ,
तुम अस्त्र बनों मैं योद्धा !
तुम धार बनों मैं वार बनूँ ,
क्यों न विजित समर होगा !!
संघर्ष मुझे प्रिये होगा ,
यदि विश्वास बनों तुम !
धरा भी मैं पग से नापूं ,
यदि आकाश बनों तुम !!
सरिता की तरह बहाना सीखो तुम ,

मैं तेज प्रवाह बन जाऊंगा !
तुम जो बन सके मोती ,
मैं प्रशांत अथाह हो जाऊंगा !!
तुम बनों प्रेरणा मेरे लिए ,

मैं भी तुम्हे प्रेरित करता जाऊं !
तुम निखरो महक जीवन की लेकर ,
तुमसा मैं भी निखरता जाऊं !!"

"-... मनु "

जब " हैडिंग्स " पढ़ कर हँसतें हैं !

आजकल जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई है कि प्रातः चाय के समय अख़बार पढ़ते समय केवल हैडिंग ही पढ़ पातें हैं .....! अब यह अलग बात है, कि पूरी खबर न पढने का शौक हो ?
ठीक है भई, पूरा समाचार पत्र भले मत पढो ? लेकिन समाचार पत्र की हैडिंग्स भी कभी -कभी मनोरंजन का ऐसा माध्यम बन जाती हैं, कि बरबस होंठों पर मुस्कराहट नृत्य करने लगती है ! यानि होता यह है कि समाचार पत्र में थोडा ध्यान दे कर पढ़ें जैसे - " पुलिस अधीक्षक का तबादला " हैडिंग लगा समाचार है और उसी पन्ने में या उसी समाचार के बगल में एक और समाचार छपा हो जिसका शीर्षक हो - " नगर में डकैतियां कम हुईं ! " तो बताइए है न मुस्कराहट लाने का कारण !
तो मैं उम्मीद रखूं न कि जब भी आप समाचार पत्र पढ़ें , भले ही आप इसे बोर या वाहियात शौक कहतें हों .... , तो कम से कम हैडिंग्स ध्यान से जरूर पढ़ें ! इससे एक फायदा होगा कि समाचार पढने से हुई बोरियत ऐसी द्विअर्थी हैडिंग्स पढने से न केवल दूर होगी, अपितु मजा भी आएगा ...! ठीक है न ..!तो आइये ऐसी ही कुछ मजेदार , चटपटी , लटपटी कुछ हैडिंग्स से आपको परिचित करवाएं -

* " बैंक में दिन - दहाड़े पांच लाख की लूट "
" ऍम .एल . ए . विदेश रवाना "

* " मंत्री का दौरा रद्द "
" नगर में गन्दगी का साम्राज्य "


* " स्कूली बच्चों को ईधन चलित वाहन न चलाने की सलाह - आयुक्त "
" मोपेड रेस : १३ वर्षीय बालक विजयी "

* " पुलिस द्वारा पत्रकार की पिटाई "
" पुलिस कर्मी पुरस्कृत होंगें "

* " मछलियों के उत्पादन में वृद्धि "
" जहरीली मछली खाने से १० मृत "

* " हर घर में नल लगेगें - प्रशासक
"पानी के लिए विवाद - २ मरे ४ घायल "

* " नगर में यातायात व्यवस्था सुधरी "
" सड़क दुर्घटना : १२ मरे "

* " पुलिस की रात्रि गश्त तेज "
" नगर में हत्याओं का दौर "


* " नारी कोमल है कमजोर नहीं "
" नारी के साथ सामूहिक बलात्कार "

* " खिलाडियों पर हमें गर्व है - मंत्री '

" क्रिकेट टीम हर कर लौटी "

* " व्यापारी नोटों का सूटकेस ले भागा "
" मंत्री जी को दो लाख की थैली भेंट "


* " मंत्री जी विदेश रवाना "
" लापता लड़की का सुराग मिला "

* " इस वर्ष फसल जोरदार होगी '
" वर्षा को ले कर किसान चिंतित "

* " खनिज विभाग : ठेके लेने में प्रतिष्ठित व्यापारियों में होड़ "
" खनिज की अवैध निकासी जारी "

तो कैसी लगीं हैडिंग्स आपको ....! मजा आया न ...!! तो जब भी समाचार पत्र पढ़ते हुए बोरियत महसूस हो तो इसी तरह की हैडिंग्स ढूंढ़ कर पढियेगा ! अपने आप न केवल बोरियत दूर हो जाएगी अपितु समाचार पत्र पढने में मजा भी आएगा ...है न ...!!!
"-... मनु "

"तुम्हारी सुन्दरता"

"जैसे प्यार नहीं छुपता ,
वैसे ही सुन्दरता छुपाये नहीं छुपती !
जैसे मुस्काना नहीं छुपता ,
वैसे ही मीठी बातें नहीं छुपती !!
इसलिए हमेशा तुम -
अपनी मीठी बातों से ,
अपनी सुन्दरता ऐसे ही बनाये रखना !!!"
-...मनु