Friday, November 26, 2010

" मुखड़ा तुम्हारा "

" सुनहली रश्मिओं में ,
ओस के धुंध के ,
आलिंगन में -
मुखड़ा तुम्हारा -
रक्तिम हो उठता है !

मीठी -मीठी सी शीत में ,
सिरहते उन पलों के ,
नैसर्गिक मिलन में -
तुम्हारा रूप -
समर्पित सा हो उठता है !

नन्ही - नन्ही कोमल दूब में ,
ओस -कणों रूपी दर्पण में ,
प्यार की चमक में -
मुखड़ा तुम्हारा -
मेरे जीवन का दर्पण बन जाता है !"
"-... मनु "

" ये देश हमारा है ..!

" पर्वतों का सा विशाल -
प्राकृतिक सौन्दर्य सा मनोरम ,
विभिन्न धर्मों से परिपूर्ण -
ये देश हमारा है !

ग्राम बाहुल्य सा भोला -
मेहनत की भूमि महकाता ,
शांति - दूत सा सुन्दर -
ये देश हमारा है !

गुलामी के अत्याचारों से -
निर्भीक , साहसी आजादी पा ,
अमर शहीद इतिहास रचता -
ये देश हमारा है !

विभिन्न रीती -रिवाजों से पूर्ण -
कला , संस्कृति और ज्ञान - संपन्न ,
मानवीयता को श्रेष्ठता मानता -
ये देश हमारा है !

संघर्ष , लगन, सयमशीलता से -
प्रगति के विभिन्न सोपान संवारता ,
सम्पूर्ण ज्ञान - संपन्न गुरु सामान -
ये देश हमारा है !


विपरीत परिस्थितिओं में -
एकता, सहयोग वातावरण पूर्ण ,
विश्व बंधुत्व का प्रेरणा स्त्रोत -
ये देश हमारा है !

भारत माता की रक्षा -
जीवन का परम लक्ष्य मानता ,
आदर्श , आदर का प्रतीक -
ये देश हमारा है ! "

"... - मनु "

" युवामन "

" आनंद - उन्मांद सा मचलता ,
कल्पना तूलिका सा ,
युवामन -
चतुर चित्रकार सामान है !

संघर्ष में तल्लीन ,
वर्तमान में भविष्य तराशता ,
युवामन -
सूत्रधार सामान है !!

असफलताओं के झंझावात में ,
शीतलता निर्मित करता ,
युवामन -
ऋतुराज समान है !!!

अन्वेषक औत्सुक सा ,
इतिहास के खालीपन में ,
वर्तमान के रंग भरता ,
युवामन -
गर्वित इतिहासकार समान है !!!! "

"...- मनु "

Thursday, November 25, 2010

कुछ मेरे शब्द :-

* " जिसके पास समस्याएं नहीं हैं , इसका मतलब कि वह खेल से बाहर हो चुका !

-"जिंदगी वह है , जो हम बनातें हैं !
ऐसा हमेशा हुआ है और हमेशा होता रहेगा...!"

-" कल्पना आपको उस दुनियां में ले जाती है ,
जो कभी भी अस्तित्व में थी ही नहीं !
लेकिन साकार होते ही वही कल्पना एक नई दुनियां बसा लेती है !! "

- " अपने सपनों पर विश्वास कीजिए ,

लेकिन आघातों में विश्वास मत कीजिए,
क्योंकि आपकी निराशा आपके भविष्य को नुकसान पहुंचा सकती है ! "

-" आदतें हमारे विचार और हमारे जीवन में जम जातें हैं !
हमारे विश्वनीय हमारे जीवन को उतना आकार नहीं देतें हैं ,
जितने कि हमारे दिमाग में रहने वाले विचार देते हैं ! "

-" आत्मा की शक्ति को लोग नहीं पहचानते ,
लेकिन आत्मा की शक्ति से ही मुश्किलों को जीता जाता है ! "

-" मन की व्यग्रता को ध्यान के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है ! "

-" जब डर का सचमुच मुकाबला करते है ,
तो हिम्मत , अनुभव और विश्वास हासिल होता है ...

इसलिए
वह काम करना चाहिए , जिसे हम नहीं कर सकते ! "

-" मैनर्स एक ऐसी चीज है किसी का भी मन मोह लेती है ,
अगर आपमें मैनर्स नहीं है , सब बेकार है !
इसलिए तो कहते हैं आपके पास कुछ हो या न हो ,
पर मैनर्स तो होने ही चाहियें !"

-" मनोबल और आत्मविश्वास ऐसे गुण हैं
जो कठिन से कठिन परिस्थितिओं में भी सफलता दिलवातें हैं !"

- " आत्मविश्वास इन्सान के अन्दर ऐसा गुण होता है ,
जो तमाम मुसीबतों में विजय पा सकता है !
यह प्रकृति प्रदत नहीं , बल्कि खुद हासिल किया जाता है ! "

-" आभावों के बीच उम्मीदों को जिन्दा रखना और उन्हें पूरा करने की हर संभव कोशिश सफलता दिलाती है ! "

-" अटूट आत्मविश्वास, सच के पक्ष में खड़े रहने का अदम्य सहस बहादुरी का प्रतीक होता है !"

- " सयम और संतुलन से काम करना ,
ताकि अपनी क्षमताओं का सही उपयोग हो सके !"

- " जो बात दिल को पसंद आये ,
उस काम को जूनून की हद तक पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए !"

-" अथाह आत्मविश्वास , ऐसा कि अपने क्षेत्र कि बड़ी से बड़ी हस्तिओं के सामने भी दम से डटे रहने कि हिम्मत आ जाये !"

अधिकार ?

" क्या हुआ जो मुझे कोई प्यार नहीं करे !
तो क्या मुझे अकेले रहने का अधिकार भी नहीं !!"
- मनु

चल अकेला

" चल अकेला फिर ऐ मेरे दिल ,
जीवन की इस लम्बी डगर पर !
सबकी यादें समेत कर ऐ मेरे दिल,
खाता चल फिर ठोकरें जीवन के सफ़र पर !!"
-मनु

हार गए

"क्या हुआ जो हम भी प्यार में हार गए ,
और रह गए अकेले !
जरूरी तो नहीं हर किसी को प्यार मिल जाये ,
और सारी खुशियाँ पा ले !!"
- मनु

काबिल नहीं मैं

" अब मन नहीं करता कि मुझे कोई प्यार करे ,
क्योंकि मैं शायद प्यार के काबिल ही नहीं !
मैं सबको खुश रखूं सब यही मुझसे उम्मीद हैं करते ,
मैं भी ख़ुशी चाहता हूँ यह कोई चाहता नहीं !!"
- मनु

Wednesday, November 17, 2010

" तुम्हारा महकता सौंदर्य "

" सुकोमल सा ,
ओस भीगे पुष्प सा -
तेरे गुलाबी मुखड़ा महकता है !

नव -प्रभात सा ,
प्रसन्नचित रश्मिओं सा -
तेरी आँखों में प्यार लरजता है !

स्वर्ण -चमक सा ,
रत्न -स्फूटित किरणों सा -
तेरा कोमल शारीर दमकता है !

मदमोहक अदाओं सा ,
शीतल मंद -मंद पवन में ,
डोलती सी डाली सा -
तेरा रंग सौंदर्य मन मोह लेता है !

कोयल की कूक सा ,
कर्णप्रिय संगीत तरंगों सा -
तेरा वाणी सौंदर्य मन बांध लेता है !

चहकना चिड़ियों का ,
स्वच्छ विचरण मनहरण मृग सा ,
तेरा नाम -
मेरी हर धड़कन पर लिख देता है !"

" -- मनु "

Tuesday, November 16, 2010

" जी चाहता है ...!"

" गहरी झील -सी पनीली ,
आँखे तुम्हारी ऐसी नशीली -
कि उनमे डूब जाने को जी चाहता है !

जीवन की मुस्कान -सी मुस्काती ,
आँखे तुम्हारी ऐसी अपनत्वभरी -
कि अपना जीवन महकाने को जी करता है !

प्यार की गहराई व्यक्त करती ,
आँखे तुम्हारी ऐसी दिल -दर्पण सी -
कि उनमे अपना प्रतिबिम्ब देखने को जी करता है !


पल
- पल मुझे अपने करीब करती ,
आँखे तुम्हारी ऐसी सम्मोहन सी -
कि सब कुछ भूल जाने को जी करता है !"

" -- मनु "

" यूँ तो तुम्हे कई बार ..."

" ख्वाबों की रंग भरी दुनियां में ,
यूँ तो तुम्हें कई बार -
रंगों से सरोबर किया है !

बसंत की हरी - भरी हरियाली में ,
यूँ तो तुम्हे कई बार -
महकता मसूस किया है !

दीपों की सुर्ख दमकती लौ में ,
यूँ तो तुम्हे कई बार -
विराहग्नि में दहकता मैंने देखा है !

बातें करते खो जाओ अपने में ,
यूँ तो तुम्हे कई बार -
मिलन के सपने देखते मैंने देखा है !

तड़प कर लिपट जाओ सपने में ,
यूँ तो कई बार -
अपने से शरमाते मैंने देखा है !"

" -- मनु "

" दोस्त "

" दूर कहीं -
धरती और आसमां मिलते हैं !
इस ज़माने में -
सच्चे दोस्त मुश्किल से मिलते हैं !
दगा को -
पाक जामा पहनाये मिलते हैं !
तो कही पे -
जान देने वाले भी मिलते हैं !
इन्सान की भावनाओं से -
खेलने वाले भी मिलते हैं !
तो कहीं -
भावनाओं में बसने वाले भी मिलते हैं !
पल -भर को -
साथ देने वाले मिलते हैं !
तो कहीं -
उम्र भर साथ निभाहने वाले भी मिलते हैं !
भगवान तो -
मंदिरों ,मस्जिदों , गिरजाघरों में मिलतें हैं !
दोस्त कहने नहीं -
निबाहने वाले मुश्किल से मिलते हैं !!"
" -- मनु
"

" अच्छा लगता है "

" पुष्पों पर चमकती-
ओस बूंदों सी ,
कोमल दूब पर दमकती -
मोतिओं सी ,
बरखा -बहार का -
मुस्कुराना अच्छा लगता है !

वृक्षों की घनी छाँव में -
इन्द्रधनुष सी ,
मन उपवन में -
मधुर स्म्रतियों सी ,
बरखा - बहार का -
इठलाना अच्छा लगता है !

पर्वत श्रेणियों को चूमती -
सम्मोहिनी सी ,
प्रकृति को आलिंगन में -
समेटती सी ,
बरखा -बहार का -
शर्मना अच्छा लगता हैं !

प्रेम में महक घोलती -
मधुर समर्पण सी ,
ऋतुओं की धडकनों में समाती -
चंचल कल्पना सी,
बरखा -बहार का-
चंचला रूप अच्छा लगता है !"
" -- मनु
"

" रूप तुम्हारा "

" तपती ग्रीष्म ऋतु में ,
कोमल रूप तुम्हारा -
शीतल छाया बन जाता है !

महकती बसंत ऋतु में ,
गुणों की महक सा,
रूप तुम्हारा -
जीवन महका देता है !


बरसती
बरखा ऋतु में ,
भीगा-भीगा सा रूप तुम्हारा -
क्षणों को यादें बना देता है !

सिरहती शीत ऋतु में ,
रक्तिम सा रूप तुम्हारा -
जीने की लालसा जगा देता है !

व्यर्थ क्यों उलझूं ऋतुओं में ,
तुम्हारे रूप सौन्दर्य के सानिध्य में-
सम्पूर्ण सृष्टि का सौन्दर्य -
मेरे जीवन की सार्थकता बन जाता है !"

"-- मनु "

" एकांत "

" दुनियां के इस -
शोर -शराबे से दूर ,
कभी -कभी मैं -
एकांत चाहता हूँ !

अपने -आप से दूर -
हो जाता हूँ दूर,
अकेलेपन में स्वयं -
मैं खो जाता हूँ !

जानता हूँ खुशियाँ ,
हैं मुझसे कहीं दूर -
फिर भी दुःख में -
मैं सदा मुस्कुराता हूँ !

पल भर साथ दे-
सब हो जातें है दूर,
कोई मेरे पास रहे -
सदा मैं यही चाहता हूँ !

ख्यालों में चला जाता हूँ -
जब मैं बहुत दूर,
तब पास सदा मैं -
अपने साये को ही पाता हूँ !"
-- मनु

" जिंदगी "

" सुना है कि हम पे ,
मेहरबां है जिंदगी !
तुम्हारे बिना मगर ,
कहाँ है जिंदगी !!

जाल हैं हर तरफ ,
यादों ने बुन दिए !

टूटे से दिल का वह ,
मुकाम है जिंदगी !!

लो डगमगा रही ,
सांसो की कश्तियाँ !
साहिल पे बनीं ,
तूफां है जिंदगी !!

जिंदगी में रहे ,
मेहमां की तरह तुम !
चल दिए तो अब ,
मेहमां है जिंदगी !!

देखो अगर तो,
पुष्प- ऐ - बहारां !
जो समझो अगर तो ,

खिजां है जिंदगी !!! "
--मनु

" कारण....? "

मैं मर जाना चाहता हूँ !
इसलिए नहीं कि -
मैं दुखी हूँ , निराश हूँ ?
बल्कि इसलिए कि मैंने -
खुशिओं के चरमोत्कर्ष का अनुभव किया है !
मैं मर जाना चाहता हूँ !
इसलिए नहीं कि -
मैं असफल हूँ , हतोत्साहित हूँ ?
बल्कि इसलिए कि मैंने -
सफलता के शिखर को छुआ है , नापा है !
मैं मर जाना चाहता हूँ !
इसलिए नहीं कि -
मैं अकेला हूँ , व्यथित हूँ ?
बल्कि इसलिए कि मै -
अकेलेपन में भी सबके साथ रहा हूँ !
मैं मर जाना चाहता हूँ !
इसलिए नहीं कि -
मैं दूसरों की लकीर पीटता हूँ ?
बल्कि इसलिए कि मैंने -
निरालेपन को मार्ग बना कर जिया है !
मैं मर जाना चाहता हूँ !
इसलिए नहीं कि -
मैं जीने के अयोग्य हूँ , लालसाहीन हूँ ?
बल्कि इसलिए कि मैंने -
जीवन को पूर्णता से जिया है !
शून्य का अनुभव किया है !!
और अब -
मुझे जीने का अधिकार नहीं है ?
इसलिए अब -
मैं मर जाना चाहता हूँ
--मनु

Monday, November 15, 2010

तुम्हारे जाने से

" साँझ का रक्तिम क्षितिज ,
विरह के दावानल सा -
दहकता है तुम्हारे जाने से !
चन्द्र किरणें बिखेरता निशाचंद्र ,
यादों के नुकीले तीरों सा -
मुझे बींधता है तुम्हारे जाने से !
प्रातः काल की मधुर सुरम्यता ,
पतझड़ में सुलगते पवन सा -
मुझे झुलसता है तुम्हारे जाने से !
तपती दोपहर का दहकता रवि ,
खंड-खंड होते मेरे अस्तित्व में ,
आड़ी-तिरछी रेखाओं से -
तस्वीर बनता है तुम्हारे जाने से !!!"

-- मनु

मेरी भावनाएं

"कौन है जिसने ,
मेरा दिल न दुखाया ऐ दोस्त !
एक तबस्सुम में ,
हर एक गम को भुला देता हूँ !!
तू तो अपना है ,
भला अपनों से शिकायत कैसी ?
मैं तो दुश्मन को भी _
जीने की दुआ देता हूँ !!!"
- मनु

ग़ज़ल

"लोगों में चर्चा मेरी आम हो गई !
सुबह हुई फिर शाम हो गई !!
उनको बहुत शक है मेरे मुकाम पर !
शायद किरण कोई गुमनाम हो गई !!
गाँव के सारे दोस्त शहरों में बस गए
हर गली सूनी मेरे नाम हो गई !!
झुकं गई थी पलके उनकी शर्म से !
हमको तो वह निगाह इनाम हो गई !!
देखा जिधर वहां खंडहर बन गए !
इस तरह से जिंदगी अंजाम हो गई !!
हमने तो खुद अपने किस्से सुनाये !
ग़ज़ल बेवजह बदनाम हो गई !!
-मनु

"प्यार : जीवन का इन्द्रधनुष"

"प्यार " एक ऐसा शब्द है जो मानव जीवन की धड़कन होता है ! हर रिश्ते की जान होता है ! यह जान अगर निकल जाये तो रिश्ते रूपी वृक्ष बिलकुल ऐसे लगतें है न जैसे पतझड़ में सूखा सा...., निरीह सा...., बेजान सा ठूंट सा...! जब हम अपने जीवन में उम्र के उस मोड़ पर पहुँचते हैं जहाँ हमे लगने लगता है की हमारे मन में कोई बस सा गया है , किसी को हम प्यार करने लगे हैं ..और कोई हमे प्यार करने लगा है . तब हमारा मन अपने अन्दर जिंदगी का एक ऐसा आनंद महसूस करने लगता है जो हमारे अन्दर एक नई शक्ति भर देता है ...एक ऐसी शक्ति जिसके कारण हमे लगने लगता है कि हम बदल से गए हैं ..!कितना अच्छा सा लगता है न अपने अन्दर यह बदलाव ..!!मन करता है हम इसी में हमेशा रहें और अपने जीवन को बिता दें ! सच ही तो है कि प्यार में इतनी ताकत होती है कि जो कभी मुस्कुराता नहीं है उसे मुस्कुराना आ जाता है , मन में उम्मीदों की , अरमानों की लहरें उठने लगतीं हैं जिसके कारण हमे यह दुनियां अच्छी सी लगने लगती है ! कहा भी गया है न कि- " प्यार में वो ताकत होती है कि दो देशों की दुश्मनी भी समाप्त हो जाती है !" जैसे किसी के भी दो पहलू होतें है उसी तरह प्यार के भी दो पहलू होतें हैं - " सकारात्मक और नकारात्मक " ! यदि प्यार हमारे जीवन में सकारात्मक रूप से रहा तो जीवन सफल सा लगता है ! इतिहास गवाह है जिसे प्यार मिला उसने इतिहास में अपना सुन्दर सा स्थान बनाया ! जैसे - ताज महल , प्यार का स्मारक ! इस प्यार में इतनी शक्ति होती है कि जिसे मिला वह अपने क्षेत्र में नाम बना पाने में सफल हो गया , जैसे - सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, राजीव गाँधी. इंदिरा गाँधी , धर्मेन्द्र , देव आनंद ...जैसे अनेक लोग हैं ! अब अगर प्यार नकारात्मक रूप ले ले तो भी इतिहास बन गए ! जैसे - हिटलर, अल्फ्रेड हिचकाक, ओसामा बिन लादेन , आदि ! यदि हम अपने मन से सोचें तो अपनी स्थिति के बारें में हम अपने से ज्यादा जानतें है न ...! हमे प्यार हुआ है या नहीं , यह प्यार हमने कैसे महसूस किया , इसने हमारे मन पर कितना असर डाला है, हम कितना प्यार करने लगे हैं , हमारी जिदगी में प्यार का क्या असर हुआ है ? क्या हमने जो अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है क्या उस पर कोई असर हो सकता है ? अपने दैनिक जीवन में क्या अंतर हम महसूस करतें हैं ? आदि अनेक बातें होती है जिस से हम इस प्यार को समझ सकतें है ..और फिर जिस से हम प्यार करतें हैं क्या वो भी हमे उतना ही प्यार करता है जितना हम करतें हैं ? बस यही वो समय होता है जहाँ से हम सकारात्मक होतें है या नकारात्मक ! फैसला हम पर होता है !! जीवन के इस दोराहे पर बहुत कठिन होता है सामान्य रह पाना ? यदि जो हमारा प्यार सकारात्मक है तब तो लगता है कि जीवन में इन्द्रधनुषी रंग भर गए हैं , और मन हर वह काम करने में सफल हो जाता है जो न केवल हमे अच्छे लगतें है बल्कि सबको अच्छे लगतें है , और अगर हमे अपने प्यार का पूरा साथ और उत्साह मिल जाये तो हमे लगता है हम भी कुछ ऐसा कर सकतें हैं , कि हम भी इतिहास में अपना स्थान बना सकतें है ...और जब मन में इस तरह का विचार आ जाये तो हमारे अन्दर आत्मविश्वास बढ सा गया है कुछ ऐसा महसूस होता है न ...! इस समय यदि हम थोडा सा प्रयास करें तो कोई मुश्किल नहीं कि हम भी इतिहास में अपना नाम नहीं लिख सकते...!! यह है प्यार कि ताकत का एक नमूना जो हर कोई चाहता है उसके जीवन में आये ! यह या नहीं ..!! अब आतें हैं प्यार के नकारात्मक पहलू पर - यहाँ कई स्थितियां आती हैं - हो सकता है जिसे हम प्यार करतें है वो कुछ समय तो यह व्यक्त करता है कि वो भी हमे प्यार करता है पर कुछ समय के बाद उसका व्यवहार बदल जाता है और प्यार एक तरफ़ा ही रह जाता है ! हो सकता है कि कोई हमसे प्यार करता है और हम उसके प्यार को समझ नहीं पाते? या यह भी हो सकता है कि समाज , धर्म , अमीरी - गरीबी आदि के कारण हम अपने प्यार को उस तरह व्यक्त नहीं कर पाते जैसा हमे करना चाहिए ? इन परिस्थितिओं में मन कहीं से टूट सा गया है नहीं लगता ? सबसे कठिन स्थिति तो तब होती है जब हम प्यार करतें है और वो भी हमसे प्यार करता है पर कुछ समय के बाद कहे कि हम प्यार नहीं करते ? यही वो स्थिति होती है जब न केवल मन टूट सा जाता है अपितु जीवन का उत्साह भी खत्म सा होने लगता है ...!मन करता है कि हम क्यों है इस दुनियां में ? जैसे तैसे मन कि इस अवस्था पर काबू पा भी ले तो जीवन में वह आनंद नहीं रह जाता जिसे वास्तव में जीवन कहतें हैं ! यहीं से शुरू होता है मन में नकारात्मक उर्जा का बनना ! और यदि मन ठान ले तो हम अपना नाम इतिहास में नकारात्मक ढंग से लिखा पाने सफल हो सकतें हैं ...!!! कितना अजीब है न यह प्यार भी ...जिसे मिल गया उसे लगता है उसे जीवन मिल गया और जिसे नहीं मिला या बीच रस्ते में छोड़ गया उसे लगता है कि उसे जीवन ही क्यों मिला ? अगर आपके जीवन में कभी ऐसा कुछ आपने महसूस किया हो तो उस पर अकेले में विचार करें और सोचें क्या करना है ..हाँ प्रयास करें कि नकारात्मक को अपने ऊपर हावी न होने न दें क्योंकि हमे जो यह जीवन मिला है उसे यूँ ही गवां देना अपने आप को धोखा देना होता है ! इसलिए इस स्थिति में सामान्य बनने की कोशिश नए जीवन की राह भी बनती है , हाँ थोडा मुश्किल जरूर होता है ..पर कोशिश से क्या नहीं होता ...! हाँ यहाँ एक बात जरूर होती है कि हमारा मन फिर किसी को प्यार नहीं कर पाता ? सही भी तो है प्यार एक ही बार होता है बार बार नहीं ! चलिए अब रोकता हूँ अपने शब्दों को, कहतें है न कि जब मन भर जाये तो शब्द अपने आप रुक जातें हैं ..और मन करता है शब्दों से दूर कहीं अकेले में चले जाएँ ...! है न ...तो बस इतना ही ....!
"-.....मनु भारतीय"

Saturday, November 13, 2010

"स्वभाव : मानव जीवन का दर्पण "

"स्वभाव : मानव जीवन का दर्पण "

"मानव का स्वाभाव उसके मन की स्थिति , दिमाग की दशा , और आस- पास के वातावरण से नियंत्रित रहता है .!" इनमे से एक भी दशा संतुलित नहीं हुई तो स्वभाव अपना स्वरुप बदल देता है ! और तब स्वभाव इनको नियंत्रित करता है , अब यह बात अलग है कि स्वभाव की दशा क्या है ? मुख्यतः स्वभाव की कुछ दशाएं होती हैं -- शांत , प्रसन्न , दुखी , और उदासीन ...! मानव जीवन की दशा का निर्धारण भी स्वभाव करता है ! इसलिए कहतें हैं न कि " बालपन में स्वभाव को जिस रूप में ढाला जाये वह वैसा ही बनता है !"
जीवन में स्वभाव में बदलाव की अनेक अवस्थाएं आती हैं .! सबसे पहले 'बालपन' की अवस्था आती है , उसके बाद 'किशोरावस्था' की अवस्था आती है , जिसमे हम अपने 'बालपन ' की चंचलता को कम करते हैं! उसके बाद 'जवानी ' की अवस्था में अपने -आप को पहचानने के स्वभाव को विकसित करतें हैं ! यही वह दशा होती है जहाँ से भविष्य का निर्धारण होता है ! इस समय लिए जाने वाले निर्णय न केवल स्वभाव को पूर्णतः बदल देतें हैं अपितु 'स्वयं ' की पहचान भी कराते हैं ! इस समय 'स्वयं ' को ध्यान में रख कर लिए गए निर्णय भविष्य में महसूस होने वाली किसी भी निराशा या अफ़सोस को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाहता है.! क्योंकि यहाँ से नवजीवन भी तो प्रारंभ होता है न ...! और वरिष्ट परिजन हमसे यही उम्मीद करतें हैं कि हम उनके दबाव में न आयें ...उनकी पसंद में न ढलें...स्वयं की इतनी सक्षमता दिखाएँ कि उन्हें भी अहसास ही नहीं अपितु विश्वास हो जाये कि हम जीवन में स्वतंत्रता से अपनी पहचान बना सकतें हैं ...! यही पहचान हमारा भविष्य भी बनती है ! कार्य क्षेत्र में असीमित शक्ति का माध्यम भी बनती है ! और यदि हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो हम अपने जीवन में इन बातों को याद कर अफ़सोस या दुखी न होंगे कि -' उस समय जिसको हम बहुत प्यार करते थे , और जो हमारा बहुत ध्यान रखता था या थी उसे पहचाने में चूके और अपना साथी नहीं बना पाए , उस समय थोड़ी हिम्मत दिखाई होती पहचानने में , और उसे अपना बना लेते तो आज यह समय न देखना पड़ता !" और यदि हमारी यह स्थिति हमारे परिजन देख ले तो उन्हें भी महसूस होगा कि उस समय बनाया गया दबाव उनकी निश्चिन्तता पर प्रश्नचिन्ह बन गया है ? इससे वे इतने व्यथित हो जातें हैं कि मन मसोस कर जातें है और हम उनकी मानसिकता भी नहीं पढ़ पाते...! समय के साथ वे अपनी इस अतृप्त इच्छा के साथ समय से दूर चले जातें हैं ...बहुत दूर ...जहाँ हम उन्हें देख तो पाते नहीं ...केवल उनकी याद ही कर सकतें है ..! बाद में जब हम उनकी अवस्था पर पहुंचते हैं तो अहसास होता है कि हमारे माता -पिता क्या नहीं
कह पाए थे हमसे ..? इसलिए इस अवस्था में अपना स्वभाव पहचानना , निर्णय लेना स्वयं के प्रति अनिवार्य होता है ! यदि हमने "स्वयं का निर्णय लिया तो आगे के स्वभाव में कोई ऐसा परिवर्तन नहीं आता जिससे विचलन का सामना करना पड़े ! क्योंकि माना गया है कि "स्वयं " से लिए गए निर्णय में ऐसी असीमित शक्ति निर्मित होती है जो आने वाली कठनाइयों को इतनी सरल बना देती है कि पता ही नहीं चलता ..!" यदि स्वयं के निर्णय के विरुद्ध निर्णय लिया तो नवीन परिवार के निर्माण के समय स्वभाव में उदासीनता आने लगती है और यह उदासीनता जीवन भर चलती रहती है ..! जो अंत में अहसास कराती है कि 'काश ' स्वयं का निर्णय लिया होता तो जो जीवन उदासीन सा बीता, उसमे रंग होते ...! सपने होते ..! उत्साह होता ..! प्यार होता ....! निर्लिप्त ख़ुशी होती ..! जिससे जीवन कब और कैसे बीतता पता ही न चलता ...!! मानव जीवन इसी जीवन की कल्पना करता है न ..! तो इसका निर्धारण भी उसे ही करना पड़ेगा न ..! " सही समय पर हिम्मत के साथ ...और विश्वास के साथ ..! " कहतें भी तो है न कि - " सही समय पर स्वयं का निर्णय कुछ खोता भी है और यह खोना भविष्य की ख़ुशी का आधार होता है !" इसलिए उस समय 'कुछ खो' कर सारे जीवन 'सब कुछ ' पाना अच्छा है न ....!!!
अभी इतना ही .....अगली बार फिर एक नए विषये के साथ ....आऊँगा आपके सामने ......
"---मनु भारतीय "

Friday, November 12, 2010

"परिवार : संसार का जीवन "

"परिवार : संसार का जीवन "
"परिवार" कितना अर्थपूर्ण शब्द है ..! इसी शब्द से संसार की हर गतिविधि चलती है ! कितने ही रूप होतें है न इस एक शब्द के ..! नि:स्वार्थ , स्वार्थ , परोपकार , कर्तव्य , बलिदान , नैतिकता , अपराध , पुण्य , भक्ति आदि ..! अनेक शब्दों की परिभाषा होता है यह शब्द ! शायद यही एकमात्र शब्द है जिसके इतने पर्याय हैं , अर्थ हैं ! वर्ना संगीत के सात सुर होतें है ! रस नौ प्रकार के होतें हैं ! कामक्रीडा के चौसंठ आसन होतें है ! चार वेद , नौ उपनिषद , सात महाद्वीप , ताश के बावन पत्ते आदि अनेक की कोई सीमा जरूर होती है ..! परन्तु 'परिवार' की सीमा नि:सम्मी होती है ! जैसे आकाश में अनंत तारे , पेड़ों की पत्तियां , धरती के असंख्य कण...आकाश में अनगिनत बादलों के झुण्ड ..! ठीक यही अर्थ भी परिवार पर लागू होता है न ..! आकाश के तारे... कोई कम चमकीला तो कोई ज्यादा , कोई छोटा तो कोई बड़ा ..! और जब तारे एक साथ रोशन होतें है तो अँधेरा दूर भाग जाता है ..! ठीक यही बात भी परिवार पर भी लागू होती है न ...! जब परिवार एक होता है तो निराशा दूर हो जाती है! कितना अजीब है न यह सब ...!
परिवार की शुरुआत दो अंजन से होती है ...उनमे प्यार होता है ..प्यार परवान चड़ता है ...एक होतें है ...और शुरू होता है परिवार ..! समय चक्र की गति से भी तेज गति से परिवार बढता है .! समय के साथ बढता यह परिवार आपस में दूरियां भी बनता है न ..! जैसे आकाश में तारों के बीच , वृक्षों की पत्तिओं के बीच , आकाश में बादलों के बीच दूरियां ...जो कभी ख़त्म नहीं होतीं ! जब आकाश में बादलों के झुण्ड आपस में टकराते हैं तो गडगडाहट से बिजली चमकती है और बरसात होती है ! इसी तरह परिवार में जब दो 'अहं' आपस में टकराते हैं तो विखंडन होता है ...! परिवार में केवल एक ही सम्बन्ध अटल रहता है और वो है - 'पति- पत्नी ' का ! जैसे आकाश में चाँद -तारे का , वृक्ष में पत्तियों और डाली का , ..! शेष सभी रिश्ते समय के साथ दूरियां बनातें हैं वैसे यह दूरियां सही भी है न ..! तभी तो नए परिवार की शुरुआत होती है ..! अब परिवार से दूरी उनकी मर्जी से बनाये या स्वयं की हिम्मत से बनाये ! बनाना तो परिवार ही होता है न ! आपसी विश्वास , समर्पण और सहयोग इसकी धड़कन होती है न .! जैसे तने से डालियाँ तब तक जुडी होती हैं जब तक उन पर ताकत का उपयोग न किया जाये ! ठीक इसी तरह यह सम्बन्ध भी मृत्यु रूपी शक्ति से ही अलग हो सकता है ..!

तो क्यों न परिवार से अपने साथ- साथ प्रक्रति के जीवन में भी नई जान डालतें रहें ...! ता कि यह दुनियां इतनी सुन्दर हो कि बार-बार इसमें आने का मन करे ....! दिल करे ...!! सच कह रहा हूँ न मैं ...!!!
तो अब इतना ही फिर मिलूँगा एक नए विषय के साथ ...!!!! "- मनु भारतीय"

"रिश्ते कितने अजीब होतें हैं !"

"रिश्ते कितने अजीब होतें हैं !"
सच
में रिश्ते अजीब से नहीं होते ...? इतने अजीब कि कभी -कभी लगता है इन्हें रिश्ते ही क्यों कहते हैं ? शायद रिश्ते निज स्वार्थ की पूर्ति का माध्यम होते हैं ! "मन " भी कितना " अपना " सा होता है , जब तक इसे ख़ुशी मिलती है इसे हर चीज अच्छीही लगती है ! परन्तु जब "मन " को कोई चीज अच्छी न लगे या उसे किसी रिश्ते से, किसी बात से, या किसी अन्य माध्यम से चोट सी लगे तो ...."मन " महसूस करता है कि वह इस शरीर में ही नहीं है ..! जाने कहाँ -कहाँ खो सा जाता है न ..! इसलिए कहतें हैं न - " मन के हारे हार है मन के जीते जीत " ! वैसे भी किसी ने सच ही कहा है कि -" दिमाग से कम करने से स्वार्थी बनने से न केवल जीवन सुखी होता है बल्कि सभी 'पूछते ' भी हैं ...! ख्याल भी करते हैं ...!! " और जो मन से, दिल से जीवन जीता है वह सदा 'अकेला ' ही रहता है ..! उसे कोई "कीमत " नहीं देता , महत्त्व नहीं देता और जीवन की खुशियाँ केवल 'मन ' को छू कर चली जाती हैं ! उसके साथ नहीं रहती हैं न ..! कितनी अजीब बात है न ..कि एक ही शरीर में दोनों के दो स्वरूपों का होना ..? एक से जीवन खुशहाल होता है तो दूसरे से अकेला ? ऊपर से लोग कहतें हैं -" रिश्ते मन से बनाये जातें हैं न कि दिमाग से ?" समझ नहीं आता जीवन किसके सहारे जियें - 'मन ' से यस 'दिमाग' से ? रिश्तों से जीवन सुखी हो क्या यह जरूरी होता है ? मैंने अपने अब तक के जीवन में यही महसूस किया कि -" दिमाग को सयम में रख कर मन से दिल से कम करें !" मैंने इसका पालन किया , शायद इसी कारण मैं सबके साथ रह कर भी अकेला ही रहा हूँ ...सबसे अलग ..! मेरे मन की एक ख्वाहिश --' मेरा कोई ध्यान रखे , मुझसे प्यारी सी बातें करे , केवल मुझे प्यार करे , " कब पूरी होगी ? पता नहीं , जीते जी या फिर ....? चाहे पूरी हो या न हो मैं अपना जीवन, अपने रिश्तों को 'मन ' से जियूँगा , न की 'दिमाग' से ! हाँ अपने कार्यों को दिमाग से करूंगा ..! पर उसमे भी 'मन ' शामिल रहेगा ! क्योंकि दिमाग सब सही माने और मन नहीं ..तो कम कैसा ? सच है न ...तो अब अपने शब्द यहीं रोकता हूँ ..फिर मिलूँगा ........! "-मनु भारतीय"