Saturday, November 13, 2010

"स्वभाव : मानव जीवन का दर्पण "

"स्वभाव : मानव जीवन का दर्पण "

"मानव का स्वाभाव उसके मन की स्थिति , दिमाग की दशा , और आस- पास के वातावरण से नियंत्रित रहता है .!" इनमे से एक भी दशा संतुलित नहीं हुई तो स्वभाव अपना स्वरुप बदल देता है ! और तब स्वभाव इनको नियंत्रित करता है , अब यह बात अलग है कि स्वभाव की दशा क्या है ? मुख्यतः स्वभाव की कुछ दशाएं होती हैं -- शांत , प्रसन्न , दुखी , और उदासीन ...! मानव जीवन की दशा का निर्धारण भी स्वभाव करता है ! इसलिए कहतें हैं न कि " बालपन में स्वभाव को जिस रूप में ढाला जाये वह वैसा ही बनता है !"
जीवन में स्वभाव में बदलाव की अनेक अवस्थाएं आती हैं .! सबसे पहले 'बालपन' की अवस्था आती है , उसके बाद 'किशोरावस्था' की अवस्था आती है , जिसमे हम अपने 'बालपन ' की चंचलता को कम करते हैं! उसके बाद 'जवानी ' की अवस्था में अपने -आप को पहचानने के स्वभाव को विकसित करतें हैं ! यही वह दशा होती है जहाँ से भविष्य का निर्धारण होता है ! इस समय लिए जाने वाले निर्णय न केवल स्वभाव को पूर्णतः बदल देतें हैं अपितु 'स्वयं ' की पहचान भी कराते हैं ! इस समय 'स्वयं ' को ध्यान में रख कर लिए गए निर्णय भविष्य में महसूस होने वाली किसी भी निराशा या अफ़सोस को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाहता है.! क्योंकि यहाँ से नवजीवन भी तो प्रारंभ होता है न ...! और वरिष्ट परिजन हमसे यही उम्मीद करतें हैं कि हम उनके दबाव में न आयें ...उनकी पसंद में न ढलें...स्वयं की इतनी सक्षमता दिखाएँ कि उन्हें भी अहसास ही नहीं अपितु विश्वास हो जाये कि हम जीवन में स्वतंत्रता से अपनी पहचान बना सकतें हैं ...! यही पहचान हमारा भविष्य भी बनती है ! कार्य क्षेत्र में असीमित शक्ति का माध्यम भी बनती है ! और यदि हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो हम अपने जीवन में इन बातों को याद कर अफ़सोस या दुखी न होंगे कि -' उस समय जिसको हम बहुत प्यार करते थे , और जो हमारा बहुत ध्यान रखता था या थी उसे पहचाने में चूके और अपना साथी नहीं बना पाए , उस समय थोड़ी हिम्मत दिखाई होती पहचानने में , और उसे अपना बना लेते तो आज यह समय न देखना पड़ता !" और यदि हमारी यह स्थिति हमारे परिजन देख ले तो उन्हें भी महसूस होगा कि उस समय बनाया गया दबाव उनकी निश्चिन्तता पर प्रश्नचिन्ह बन गया है ? इससे वे इतने व्यथित हो जातें हैं कि मन मसोस कर जातें है और हम उनकी मानसिकता भी नहीं पढ़ पाते...! समय के साथ वे अपनी इस अतृप्त इच्छा के साथ समय से दूर चले जातें हैं ...बहुत दूर ...जहाँ हम उन्हें देख तो पाते नहीं ...केवल उनकी याद ही कर सकतें है ..! बाद में जब हम उनकी अवस्था पर पहुंचते हैं तो अहसास होता है कि हमारे माता -पिता क्या नहीं
कह पाए थे हमसे ..? इसलिए इस अवस्था में अपना स्वभाव पहचानना , निर्णय लेना स्वयं के प्रति अनिवार्य होता है ! यदि हमने "स्वयं का निर्णय लिया तो आगे के स्वभाव में कोई ऐसा परिवर्तन नहीं आता जिससे विचलन का सामना करना पड़े ! क्योंकि माना गया है कि "स्वयं " से लिए गए निर्णय में ऐसी असीमित शक्ति निर्मित होती है जो आने वाली कठनाइयों को इतनी सरल बना देती है कि पता ही नहीं चलता ..!" यदि स्वयं के निर्णय के विरुद्ध निर्णय लिया तो नवीन परिवार के निर्माण के समय स्वभाव में उदासीनता आने लगती है और यह उदासीनता जीवन भर चलती रहती है ..! जो अंत में अहसास कराती है कि 'काश ' स्वयं का निर्णय लिया होता तो जो जीवन उदासीन सा बीता, उसमे रंग होते ...! सपने होते ..! उत्साह होता ..! प्यार होता ....! निर्लिप्त ख़ुशी होती ..! जिससे जीवन कब और कैसे बीतता पता ही न चलता ...!! मानव जीवन इसी जीवन की कल्पना करता है न ..! तो इसका निर्धारण भी उसे ही करना पड़ेगा न ..! " सही समय पर हिम्मत के साथ ...और विश्वास के साथ ..! " कहतें भी तो है न कि - " सही समय पर स्वयं का निर्णय कुछ खोता भी है और यह खोना भविष्य की ख़ुशी का आधार होता है !" इसलिए उस समय 'कुछ खो' कर सारे जीवन 'सब कुछ ' पाना अच्छा है न ....!!!
अभी इतना ही .....अगली बार फिर एक नए विषये के साथ ....आऊँगा आपके सामने ......
"---मनु भारतीय "

1 comment:

  1. manav svbhav ke bare men kuch nya or nveen pesh krege to aanand hoga

    ReplyDelete