" साँझ का रक्तिम क्षितिज ,
विरह के दावानल सा -
दहकता है तुम्हारे जाने से !
चन्द्र किरणें बिखेरता निशाचंद्र ,
यादों के नुकीले तीरों सा -
मुझे बींधता है तुम्हारे जाने से !
प्रातः काल की मधुर सुरम्यता ,
पतझड़ में सुलगते पवन सा -
मुझे झुलसता है तुम्हारे जाने से !
तपती दोपहर का दहकता रवि ,
खंड-खंड होते मेरे अस्तित्व में ,
आड़ी-तिरछी रेखाओं से -
तस्वीर बनता है तुम्हारे जाने से !!!"
-- मनु
सुन्दर शब्द रचना ।
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