Monday, November 15, 2010

ग़ज़ल

"लोगों में चर्चा मेरी आम हो गई !
सुबह हुई फिर शाम हो गई !!
उनको बहुत शक है मेरे मुकाम पर !
शायद किरण कोई गुमनाम हो गई !!
गाँव के सारे दोस्त शहरों में बस गए
हर गली सूनी मेरे नाम हो गई !!
झुकं गई थी पलके उनकी शर्म से !
हमको तो वह निगाह इनाम हो गई !!
देखा जिधर वहां खंडहर बन गए !
इस तरह से जिंदगी अंजाम हो गई !!
हमने तो खुद अपने किस्से सुनाये !
ग़ज़ल बेवजह बदनाम हो गई !!
-मनु

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