" पुष्पों पर चमकती-
ओस बूंदों सी ,
कोमल दूब पर दमकती -
मोतिओं सी ,
बरखा -बहार का -
मुस्कुराना अच्छा लगता है !
वृक्षों की घनी छाँव में -
इन्द्रधनुष सी ,
मन उपवन में -
मधुर स्म्रतियों सी ,
बरखा - बहार का -
इठलाना अच्छा लगता है !
पर्वत श्रेणियों को चूमती -
सम्मोहिनी सी ,
प्रकृति को आलिंगन में -
समेटती सी ,
बरखा -बहार का -
शर्मना अच्छा लगता हैं !
प्रेम में महक घोलती -
मधुर समर्पण सी ,
ऋतुओं की धडकनों में समाती -
चंचल कल्पना सी,
बरखा -बहार का-
चंचला रूप अच्छा लगता है !"
" -- मनु "
कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
aisi sundar kavita padhana hame bhi achcha lagata hai. bahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग्गिंग में स्वागत है आपका !!
ReplyDeleteमित्र आप और आपकी तरह से अनेक साथी ब्लॉग पर लिख रहे हैं। किसी ने किसी स्तर पर इसका समाज पर असर होता है। जिससे देश की ताकत और मानवता को मजबूती मिलती है, लेकिन भ्रष्टाचार का काला नाग सब कुछ चट कर जाता है। क्या इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत नहीं है? भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
ReplyDeleteइसी दिशा में कुछ सुझाव एवं समाधान सुझाने के छोटे से प्रयास के रूप में-
"रुक सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार!"
आलेख निम्न ब्लॉग्स पर पढा जा सकता है?
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/90.html
http://presspalika.blogspot.com/2010/11/90.html
http://presspalika.mywebdunia.com/2010/11/17/90_1289972520000.html
Yours.
Dr. Purushottam Meena 'Nirankush
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