" किसी भी तरह का ज्ञान हो या अविष्कार ..यदि उसे लिखा न जाये तो उसके अस्तित्व का पता नहीं चल पाता ! ठीक इसी तरह यदि हम अपनी बातों को विचारों को न लिखें तो पता नहीं चलता कि हम क्या हैं? क्या सोचतें है ? क्या सोच सकतें है ? इसलिए सदियों से लिखने की परंपरा चली आ रही है ! अब यह बात अलग है कि समय के साथ लिखने के तरीके बदले , माध्यम बदले , पर लिखना नहीं रुका ! इसलिय हमे भी लिखने की आदत बनाये रखनी चाहिए न ! पहले तो होता यह था कि लिखो फिर छपवाओ , बाटों तब कुछ को ही पाता चल पाता था कि फलाने शख्स ने कुछ लिखा है ? फिर आया समाचार पत्र का जमाना ..पर उसमे लिखना ज्यादा दिनों तक याद नहीं रह पाता था ...! उसके बाद आया इन्टरनेट का जमाना ..यह वो क्रन्तिकारी माध्यम है जिसके माध्यम से हमारा लिखा लम्बे समय तक रहता है , और जब चाहे पढ़ सकतें है , उसमे अपनी प्रतिक्रिया दे सकतें हैं , जो आगे लिखने में हमारा मार्गदर्शन करतीं हैं !
तो कहने का मतलब केवल इतना ही है कि लिखने से न केवल हम अपने मन की बातें लिख कर अपने मन को हल्का भी कर पातें हैं साथ ही अपने आप को पहचान भी पातें हैं ...! और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह भी है कि हम समाज में चेतना भी जगातें हैं ! और अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को बांटते भी है ! यह हमारा कर्तव्य भी तो है न ...! उधारहण के लिए अमिताभ बच्चन को ही ले, वे प्रतिदिन अपने ब्लाग में अपने मन की भावनाओं को लिखतें है , कितने सामान्य रहतें हैं...!अपने कर्म क्षेत्र में उनका अपना अलग स्थान है न ..!
लिखने से कुछ फायदे भी होतें है ? जैसे हमारा व्यक्तित्व सामान्य रहता है , उसमे कोई दिखावट , घमंड या ऐसी कोई चीज नहीं आ पाती जो हमारे व्यक्तित्व में कहीं नकारत्मक शो करे ! हमारे अन्दर कुछ सीखने की प्रवर्ति बढती है , शब्दों पर , बोलने पर नियंत्रण करना आ जाता है ! और लिखने से कभी - कभी हम कुछ ऐसा भी लिख जातें है जिस से हम अपनी अलग पहचान भी बना पाने में सफल हो सकतें है!
तो शुरू करें लिखना ...हाँ एक बात और लिखते समय यह कभी न सोचें कि पढने वाले क्या सोचेंगे ? बस जो मन में है उसे जरा सलीके से अच्छे शब्दों में लिखतें जाएँ ..! कोशिश करें कि उसमे रोचकता हो ...! बस इतना ही ...!
शेष फिर
आपका अपना ही ---
" - ... मनु "
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