Sunday, December 5, 2010

" कुछ मेरी भावनाएं है जो मुक्तक के रूप में ढल सी गई हैं , जिन्हें अपने इस ब्लाग में लिख रहा हूँ ----!"

* " उम्र के सरकते दिन ,
ग़मों को बढ़ा गए !
कहने को तो जी लिए,

फिर ऐसा जीना भी क्या ? "
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* ' चाहत के चन्द लव्जों को ,
सीने से लगाये रहे !
बस इसी वहम में ,
जिंदगी गुजर जाये !! "
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* " मुस्कुराने की कोशिशें ,
जब नाकाम होतीं हैं !
दिल फिर उन्हीं ,
वीरानों में भटक जाता है !! "
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* " प्यार की उस आखं - मिचोंनी को ,
हम खुद भी तो नहीं समझे !

लोग पूछ्तें हैं अक्सर ,
उस आगाज का अंजाम क्या हुआ ? "

" - ... मनु "

1 comment:

  1. कहने को तो जी लिए पर ऐसा जीना भी क्या ...

    जिसको खुद ना समझे , गैरों को समझाएं कैसे ...!

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