जब भारत आज़ाद हुआ तो सब लोग जश्न में व्यस्त हो गए ! एक गावं में तालाब के किनारे कुछ युवक बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे !
तभी एक ग्रामीण आया और उनसे बोला - " सब लोग अपनी ख़ुशी में तुम लोगों को कैसे भूल गए जब कि तुम लोगों पहले बहुत थे पर आज़ादी के लिए संघर्ष करते हुए अब इतने कम बचे हो तुम्हे तो खुश होना चाहिए न !"
उन युवकों में से एक ने कहा - " लगता है हमने कुछ गलत लोगों को कुछ ज्यादा ही महत्त्व दे दिया था अब लगता है इसके परिणाम हमे और सबको कहीं हमेशा न भुगतने पड़ें ? यही सोच रहें हैं ? "
पर उस ग्रामीण की समझ में नहीं आईं उनकी बातें , उसने केवल सर हिलाया और चला गया !
कुछ सालों बाद ......
एक दिन वही युवक तालाब के किनारे बैठे थे तो वही ग्रामीण आया और उनसे बोला - " एक बात समझ में नहीं आई उन सबके नाम से कहीं कोई मूर्ति या समारोह नहीं हो रहा जिन्होंने आपके साथियों जैसे अपनी जान देश की स्वतंत्रता के लिए कुर्बान कर दी ? और जिन्होंने आपके जैसे कोई काम नहीं किया उनके नाम से चौक - चौराहों के नाम और मूर्तियाँ लगाई जा रहीं हैं ? ऐसा क्यों ?
उन युवकों में से एक ने अब खुश होते हुए कहा - ये तो अच्छी बात है न ...! तुम्हे हमारा नाम कहीं नहीं दिखा ?
ग्रामीण ने हैरान होते हुए कहा - नहीं ?
युवक ने हँसते हुए कहा - जय स्तम्भ में हमारे नाम लिखे हैं न पढ़ लेना ..!
फिर ग्रामीण की समझ में कुछ नहीं आया और सर हिलाते हुए चला गया !
कुछ सालों बाद फिर -
उसी स्थान पर उन्ही युवकों के सामने वही ग्रामीण कह रहा था - ' सही कहा था तुम लोगों ने ..मैंने तुम लोगों के नाम पढ़े ..मुझे अब समझ में आया ..कितने सुन्दर अक्षरों में तुम्हारे नाम लिखे हैं ..ठीक वैसे ही - ' जैसे कर्तव्य , भावना , और सत्यता दिखती नहीं है पर ये दुनिया इनके बिना अधूरी है वैसे ही आप युवक हैं ! जिनके इस तरह के काम किसी को दिखते भले न हों पर इसके बिना किसी भी देश का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा ! मुझे गर्व है कि - मैं आपका ही एक रूप हूँ ! "
इस पर युवकों ने कहा - अब समझ में आया न - किसी भी काम को करते समय ये नहीं सोचना चाहिए - हमारा नाम होगा या नहीं , अपना काम करते जाओ बस !"
-----सच ही है न सैनिक , किसान , देश भक्त युवक , धर्म रक्षक यदि अपने नाम के लिए काम करें तो वे ये सब काम कर पाएंगे ..? नहीं न ...!!!!
(यह सच्ची घटना है - मोहन भया...)
तभी एक ग्रामीण आया और उनसे बोला - " सब लोग अपनी ख़ुशी में तुम लोगों को कैसे भूल गए जब कि तुम लोगों पहले बहुत थे पर आज़ादी के लिए संघर्ष करते हुए अब इतने कम बचे हो तुम्हे तो खुश होना चाहिए न !"
उन युवकों में से एक ने कहा - " लगता है हमने कुछ गलत लोगों को कुछ ज्यादा ही महत्त्व दे दिया था अब लगता है इसके परिणाम हमे और सबको कहीं हमेशा न भुगतने पड़ें ? यही सोच रहें हैं ? "
पर उस ग्रामीण की समझ में नहीं आईं उनकी बातें , उसने केवल सर हिलाया और चला गया !
कुछ सालों बाद ......
एक दिन वही युवक तालाब के किनारे बैठे थे तो वही ग्रामीण आया और उनसे बोला - " एक बात समझ में नहीं आई उन सबके नाम से कहीं कोई मूर्ति या समारोह नहीं हो रहा जिन्होंने आपके साथियों जैसे अपनी जान देश की स्वतंत्रता के लिए कुर्बान कर दी ? और जिन्होंने आपके जैसे कोई काम नहीं किया उनके नाम से चौक - चौराहों के नाम और मूर्तियाँ लगाई जा रहीं हैं ? ऐसा क्यों ?
उन युवकों में से एक ने अब खुश होते हुए कहा - ये तो अच्छी बात है न ...! तुम्हे हमारा नाम कहीं नहीं दिखा ?
ग्रामीण ने हैरान होते हुए कहा - नहीं ?
युवक ने हँसते हुए कहा - जय स्तम्भ में हमारे नाम लिखे हैं न पढ़ लेना ..!
फिर ग्रामीण की समझ में कुछ नहीं आया और सर हिलाते हुए चला गया !
कुछ सालों बाद फिर -
उसी स्थान पर उन्ही युवकों के सामने वही ग्रामीण कह रहा था - ' सही कहा था तुम लोगों ने ..मैंने तुम लोगों के नाम पढ़े ..मुझे अब समझ में आया ..कितने सुन्दर अक्षरों में तुम्हारे नाम लिखे हैं ..ठीक वैसे ही - ' जैसे कर्तव्य , भावना , और सत्यता दिखती नहीं है पर ये दुनिया इनके बिना अधूरी है वैसे ही आप युवक हैं ! जिनके इस तरह के काम किसी को दिखते भले न हों पर इसके बिना किसी भी देश का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा ! मुझे गर्व है कि - मैं आपका ही एक रूप हूँ ! "
इस पर युवकों ने कहा - अब समझ में आया न - किसी भी काम को करते समय ये नहीं सोचना चाहिए - हमारा नाम होगा या नहीं , अपना काम करते जाओ बस !"
-----सच ही है न सैनिक , किसान , देश भक्त युवक , धर्म रक्षक यदि अपने नाम के लिए काम करें तो वे ये सब काम कर पाएंगे ..? नहीं न ...!!!!
(यह सच्ची घटना है - मोहन भया...)
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