सपनीला -सा मैं देखा करता था सपना , कब घूमूँगा देश विदेश ? कब बना पाउँगा अपने मित्र ..? कब बन पाउँगा मैं आत्मनिर्भर ..? कब कह पाउँगा अपने देश , धर्म और भाषा की विशेषताएं खुल कर ..? अब चूँकि मैं सपने देखता भी था साथ ही वे कैसे सच होंगे ये भी सोचता था ..क्या करूँ उनके सच होने लिए ? कैसे करूँगा ये सब ? किसकी मदद लूँ ? ये भी सोचता था ! पर हाँ सोचता भी था और उस पर अमल भी ये सोच कर करता था कि - 'सपने तो मेरे हैं न तो मुझे ही कोशिश करनी होगी !' बस अपने आत्मविश्वास को बढाता गया और अपने काम करता गया .. हाँ समय जरूर लगा ..क्यों कि मैंने सयम भी बना कर रखा अपने में ..और आज मेरे सपने सच हो कर मुझे कहतें हैं - " देखा मुझे देखने का फायदा ..पहले क्या थे अब क्या हो ? अच्छा है न ..सब ...जैसा तुम चाहते थे वैसा हुआ न ..! " मैंने भी सपने से कहा मैं अब - " तुम्हे देखना कभी न छोडूंगा ..!"
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