Monday, February 21, 2011

" रिश्ते " ..!

" रिश्ते " ..! कितना अपना सा अहसास है इसमें ! मन करता है न ...कभी इस 'शब्द ' से अलग न हों हम ! कितने रंग दिखता है  न ये एक शब्द - रिश्ते ' ! हमारे मन पर पूरी तरह काबू रहता  है इस शब्द का ..! हम रिश्तों से संचालित होतें हैं न कि हमसे रिश्ते ..? परन्तु हम इस गलतफहमी में जीते हैं कि हम रिश्तों को संचालित करतें है ? जब चाहें रिश्ते हमारे मन को चाहे जिस रंग में रंगना चाहे रंग देतें हैं ..! और हम हैं कि ..अपनी खुशफहमी में खुश रहतें हैं कि ..अपने रिश्तों में हम जो चाहे रंग भर सकतें हैं ..! जब रिश्ते टूट जातें हैं तब हमे अपनी खुशफहमी की असलियत का पता चलता है ..पर  तब तक देर हो चुकी होती है न ..! हम उस समय तो इस असलियत को समझ जातें हैं पर फिर पता ही नहीं चलता कब भूल गए ..? यही तो विशेषता है इस एक शब्द  की ..जिसे हम - रिश्ते ' कहतें हैं ..! इसलिए हमे इस बात को याद रखना चाहिए न कि हम 'रिश्तों ' में केवल अपना प्यार , अपनत्व और पूरा समर्पण देना चाहिए न कि उस पर अपना काबू रखना चहिये ...जैसे ही हमने ' रिश्तों ' पर अपना काबू दिखाया कि ..पता नहीं कैसे दरार आ जाती है 'रिश्तों में' ..! ' रिश्तों ' को बांधना यानि रिश्तों में खुद से ही दरार डालने का काम कर जातें है न हम ..! इसलिए रिश्तों में जीना चाहिए ..न कि हमसे रिश्तें जियें ..!!!

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